आँसुओं की कोई कीमत नहीं अब
बहकर कहीं भी चले जाते हैं
अब शब्दों में बंद है
हर जज्बात, हर एहसास और
ढूंढ़ने पर मिल जाएंगें कई जख्मों के निशान
जो ना आँसू बन के बह पाए थे
ना शब्दों में ढ़ल पाए थे!
- सीमा श्रीवास्तव
आँसुओं की कोई कीमत नहीं अब
बहकर कहीं भी चले जाते हैं
अब शब्दों में बंद है
हर जज्बात, हर एहसास और
ढूंढ़ने पर मिल जाएंगें कई जख्मों के निशान
जो ना आँसू बन के बह पाए थे
ना शब्दों में ढ़ल पाए थे!
- सीमा श्रीवास्तव
सुबह चिड़िया उठती है
सब की खिड़की पर
ठक - ठक करती,
हाल - चाल लेती,
निश्चिंत करती खुद को
किसी पेड़ की टहनी पर
बैठ जाती है.
आदमी,वृक्ष, धरती
सब सुरक्षित रहें
वह मन ही मन
मनाती है.
बचा रहे प्रेम
भरोसा, उम्मीद
वह मन ही मन
सोचती है!
- सीmaa
अच्छा है कि तुम मेरी हर जिद्द पूरी नहीं करते,
अच्छा है कि मेरे हर सवाल को
अटका कर छोड़ देते हो तुम
मैं लौट कर खुद के पास आ जाती हूँ और
मेरी तन्हाई में मुझे मिल जाता है सब कुछ!
- सीmaa
मै ,
खुश रहना
चाहती हूँ
हर पल
इसलिए
मिलती हूँ
फूलों से ,
खेलती हूँ
हवाओँ से.
चहकती हूँ
पंछियों के साथ।
किसी गीत के
बोल गुनगुनाती हूँ ,
दीवानों के
मन मे डुबकी
लगाती हूँ
और
रंग देती हूँ
शब्दों को
इश्क़ के
रंग में !!
मै ,
हकीकत की
जमीन को
ठोकर मार के
थोड़ी दूर
ख़वाबों के
साथ उड़
जाती हूँ
बस इसलिए
कि मै
ख़ुश रहना
चाहती हूँ !!
- सीमा श्रीवास्तव
नहीं पता कि जो हुआ
वो कितना सही हुआ
पर जो भी हुआ
वो होता चला गया!
ये नदियाँ जैसे बहती
चली गईं।
ये पौधे जैसे पेड़
होते गए!
कलियाँ जैसे करवट बदल कर
फूल बन गईं!
पत्थर घिस - घिस के
रेत होते रहे
और समन्दर सूख के
भाप से बादल!
हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ
हाँ, जो हुआ सो सही ही हुआ!
- सीmaa
स्त्रियाँ अपने काजल से
रच लेती है आँखों में
कुछ रंगीन सपने,
हाथों की मेंहदी में
लिख लेती है
गजल और
गुनगुनाती है
जिंदगी की ताल पर
अपनी पसंद का कोई गीत!
अपने ख्वाबों में
झालर लगाकर वो रोज
उन्हें लहराती हैं
और छेड़ती हैं
मन के तारों पर
मधुर संगीत!
-सीmaa
तुम जब साजिशें रच रहे होगें
मैं तितलियों के पंखों के रंग गिन रही हूँगीं!
तुम जब पानी में ज़हर मिला रहे होगे
मैं नदी में अपने पैर डुबो कर
छप-छपाछप कर रही हूँगीं!
तुम जब दुनिया के सारे मासूम चेहरों को
मसलने की सोच रहे होगे
मैं अपनी कूचीं उठाकर बना रही हूँगीं
नींद से उठकर आँखें मलता एक बालक!
- सीmaa
जब अपने लिए
थोड़ी खुशियाँ बटोरने निकली
तब प्रलय-प्रलय का
हाहाकार हुआ!
लोग जब भिड़े हुए थे
क्रांति में
मैंनें बीज बोया था प्रेम का,
शांति का!
जिंदगी की
इतनी लड़ाईयाँ लड़ने के बदले
अगर थोड़ा सा भी प्रेम पा सकूँ तो
प्रलय के बाद रुह भटकेगी नहीं!
ये देह मिट्टी में मिल कर भी
चंदन सी महकेगी तब!
- सीमा श्रीवास्तव
जब खत्म हो जाते हैं
बोरियों में कसे अनाज
औरतें सुस्ताना चाहती हैं
पर घर के
खाली डब्बे जब बिना वजन के
गिरने लगते हैं तो
औरतें एक नई लिस्ट बनाती हैं।
भर देती हैं उसमें
पहले से भी ज्यादा जरूरतें
नए-नए साबुन - शैम्पू, तेल।
डब्बे फिर भर जाते हैं
पर मन का एक हिस्सा खाली ही रहता है!
उस खाली जगह को भरने के लिए
उनका थोड़ा खाली रहना जरुरी है!
- सीmaa
यूँ ही रोज अपनी चुप्पियाँ छोड़ जाते हो तुम
और मैं उससे जिंदगीं के अर्थ निकाला करती हूँ
तुम्हारा होना ना होना मेरे मन की चंचलता है
तुम जो नहीं कहते वो सुन लेती हूँ मैं
तुमने जो सोचा भी नहीं वो मेरी ख्यालों में होता है
मैं हर बार तुमसे दो कदम आगे रहती हूँ
मैं हर दिन खुद से ज्यादा तुमको जीती हूँ!
- सीmaa
कोई भरता है भय,
कोई देता है स्नेह,
कोई बेचैन करता
कोई दूर से ही
दुआ करता,
अपना स्नेहिल स्पर्श भेजता।
बिन बोले सब सुन लेता,
बिन कहे प्रेम करता,
हमें अपना समझता
पर चुपचाप रहता।
- सीमा
प्रेम आसमान में
उगे सितारों की बुनावट है,
प्रेम भोर में आँखें मलते
सूरज का प्यारा मुखड़ा है,
प्रेम नदियों की मौज है,
सागर की लहरें हैं,
फूलों की सुगंध है,
हवाओं की नमी है
पेड़ो की हरियाली है
अमलताश, गुलमोहर, पलाश है प्रेम
कुछ अजीब सा एहसास है प्रेम
महसूस करना तुम्हारे आसपास है प्रेम!
ये क्या हुआ कि
सारा वजूद सिमट गया है
एक जगह ही!
ये क्या हुआ कि
मैं होकर भी हूँ नहीं कहीं!
ये क्या हुआ कि
जिसे देखना चाहा छू के
वो सच में कोई था ही नहीं!
ये क्या हुआ कि
जिंदगी मेरी होकर भी
रही तेरे पास ही!
- सीमा श्रीवास्तव
क्यों छीन लिए जाते हैं
प्रेम वाले शब्द
क्यों जुड़ने की जगह
जुदाई जगह ले लेती है!
हर बार पौधों की जगह
बदलने से उनके मुरझाने का डर रहता है!
ठीक उसी तरह प्रेम जब जड़े फैला ले तो
नासमझी मत करो।
किसी की जिंदगीं है ये
इससे दिल्लगी मत करो!
- सीmaa
वो एक उदास रात थी
जब तुम्हारी शाखाओं को बाँहें समझ
वो नन्हीं चिड़िया आराम से सो गई थी
आँधियों से बेखौफ
बहुत भरोसा था उसे तुमपर
तुमने भी उसके भरोसे की लाज रखी
और एक रिश्ता बन गया विश्वास का
चिड़ियाँ की रातें अब उदास नहीं थी!
उन शाखाओं में कितनी ही जिंदगियाँ थी!
सब मिल कर रहते और पेड़ का आभार व्यक्त करते
पेड़ भी बहुत खुश था कि वो अकेला नहीं
कितनी चहचहाहट थी सुबह से शाम तक!
बस रात को पेड़ देर से सोता
सबकी देखभाल करके!
पेड़ और चिड़ियों का रिश्ता तो सदियों पुराना है!
पेड़ के दिल में ही तो चिड़ियों का वास है!
- सीmaa
नहीं पता क्यों
मेरी क्लास का सबसे साँवला और
घुंघराले बालों वाला मेरी अंग्रेजी शिक्षिका का
गुस्सैल बेटा मेरा ध्यान क्यों खींचता था!
उसकी बड़ी - बड़ी आँखें
कभी -कभी डरावनी भी लगती थी
फिर भी सारा ध्यान उसी पर!
एक दिन कबड्डी खेलते समय उसे
जबर्दस्त चोट लगी
हाथ - पैर सब छील गया
उसे चोट लगी और मेरी आँखों में आँसू
दौड़ के अपनी टीचर को बुलाने गई पर
फर्श पर पानी गिरा था
मेरे पैर फिसले और
मैं चित हो गई
और वो निर्मोही
इतनी चोट लगने के बाद भी
मुझे देखकर
ठहाके लगा के हसे जा रहा था!
- सीmaa
उस दिन
झूले से उतरते समय
मेरी स्कर्ट
झूले की करी में फंस कर
अच्छी-खासी फट चुकी थी!
ठीक उसी वक्त
तुम दौड़ कर बरामदे में टंगी
अपनी बहन(मेरी सहेली) की
जींस ले आए थे
और फिर
जब मैं उसे लौटाने
तुम्हारे पास आई तो
तुमने कहा
कपड़े ऐसे पहनने चाहिए
जो उलझे नहीं
फंसे नहीं।
आज भी
दुपट्टे को संभालते समय
साड़ी की आँचल ठीक करते समय
तुम अनायास ही याद आ जाते हो
बस ग्यारह की ही तो थी मैं
उस समय
और तुम तेरह के!
कुछ बातें
दिल के करीब रहती हैं
कुछ नसीहतें
हमेशा याद रहती हैं!
- सीmaa
सोचो तो कुछ नहीं था
ना प्यार, ना नफरत
ना ख्वाब, ना कोई हकीकत
बस एक मंच था और
हमें जारी रखना था कोई नाटक
दर्शकों की मांग पर
ये दिल दिमाग की सारी
मेहनत थी
सारा जुगाड़ वक्त ने लगाया था।
- सीmaa
नहीं पता कौन हो तुम
कि ख्वाबों के आसमान से
अचानक ही हकीकत की जमीन पर
उतर आए हो तुम!
फिर भी ख्वाब ही क्यों लग रहे हो तुम!
नहीं जानती मैं सपने में हूँ
या सच को सपना समझ रही हूँ!
नहीं पता कौन हो तुम!
ख्वाब हो या हकीकत हो तुम!
- सीमा
#ख्वाब
#हकीकत
तुम अक्सर मुझे अकेला छोड़ देते हो
किनारों पर
और मैं बह कर तुम्हारे पास चली आती हूँ
कि तुम्हारा हर पता मालूम है मुझे!
कि तुम्हारी खुश्बू मेरे पास ही रहती है
और वो हाथ पकड़ कर मुझे
पहुँचा देती है तुम तक!
मुझे पता है इसे पढ़ने के बाद
एक फीकी सी मुस्कान होगी
तुम्हारे लबों पे और
इसी मुस्कान पर मैं
मर - मिटती हूँ हर बार ॥
- सीमा
मैं जब शून्य हो चुकी थी
तुम अंक बन के
मेरे पास आए।
अब लौटने से पहले
एक बार मुड़ के देख लेना
कि तुम्हारे कितने अंक
मेरे पास रह गए हैं
पर तुम नहीं तो
ये अंक भी
शून्य हैं
मेरे लिए
💝
- सीमा
हम सभी के पास दु:ख की
छोटी - छोटी नदियाँ हैं
आओ हम सभी
सागर में अपना दर्द बहा आएं
कि सागर का दिल
बहुत बड़ा है!
- सीमा
किसी कहानी में मैं हर बार
एक चिड़िया बनना चाहूँगी
कि चिड़िया होना
मुझे अच्छा लगता है।
जिंदगी छोटी ही सही
अपनी पसंद की हो
मैं चिड़िया बन कर ही
तुम्हारी कहानी का भी
हिस्सा बनुँगी!
तुम क्या बनना चाहोगे
ये तुम जानो!
- सीमा
हम खुद को खुश करने के लिए
बनाते हैं एक तस्वीर।
हम खुद को
खुश करने के लिए लिखते हैं एक कविता।
सुनते हैं मनपसंद गीत-संगीत
अपने मन - मुताबिक दोस्त बनाते हैं।
खुद की खुशी के लिए बनते हैं, सँवरते हैं।
खरीददारी करते हैं।
अपने फूलदानों में रखते हैं ताजे फूल
कि देख कर खुशी हो।
पालतू जानवर, पंछी सब हमारी ही खुशी से
रहते हैं हमारे साथ।
खुद को खुश रखना उतना ही जरूरी है
जितना जीने के लिए हवा और पानी!
फिर भी हम इसे रोज भूल जाते हैं।
- सीमा
मैं बेतहाशा भागती थी
ख्यालों में
कि वो मेरी पहुँच से दूर था!
मैं घूम कर लौट आती थी
अपने खुरदुरी सतह पर
और महसूस करती थी
सिर्फ उसकी कोमलता!
- सीमा
तुम्हारे शब्द
कितने पवित्र थे ना
मैं हर बार कुछ और
माँग लेती थी।
उन दिनों हम दूर होकर भी
बहुत पास थे ।
तुम्हारी स्नेह और
प्यार भरी बातों से
मेरे अंदर पनपने लगा था प्रेम।
मैंने कितनी दफे
प्रेम के पाँव के
कोमल स्पर्श को
महसूस किया।
महीने चढ़ने लगे
बहुत दिनों तक
हमारा संवाद नहीं हुआ।
मैं खानाबदोश सी
तुम्हें ढूंढती रही
कहाँ,कहाँ!
झेलती रही तन्हाई!
वक्त की गोलाई बढी
मैने बड़े उदास से
दिखने वाले
समय को जन्म दिया।
बड़ा गुमसुम सा
रहता है वो।
तुम आओ और
इसे
अपना प्यार भरा
स्पर्श दो
कि
इतना हक तो है उसका
तुमपर
कि ये उदासी भी तो
तुम्हारी ही देन है!
- सीमा
मैंनें देखा है पेड़ों को करवटें लेते हुए
कि कभी-कभी उनका भी जिस्म अकड़ जाता है!
मैंनें देखा है उन्हें बाँहें फैला कर
अंगड़ाई लेते हुए,
सुबह की धूप में
खिलखिलाते हुए और
दोपहर की धूप में निढ़ाल होते हुए।
मैं पेड़ों को रोज निहारती हूँ।
उन्हें दुआएँ देती हूँ।
मेरे घर के ठीक पीछे खड़ा
पीपल का पेड़ अभी बहुत उदास है।
उसके सारे पत्ते झड़ गए हैं।
उसकी टहनियाँ नंगीं हो गईं हैं
वो हरी पत्तियों को
जल्द से जल्द लौट आने का
निवेदन कर रहा है!
पत्तियाँ जल्द ही सज जाएगी टहनियों पर
पीपल चैन की नींद सोएगा कुछ दिन!
- सीmaa
मैं जानती हूँ तुम समय से पहले ही समझदार हो गए थे
तुम्हें दुनिया की हर ऊँच-नीच नापनी थी,
तुम्हें अपने मापदंड बनाने थे,
दुनिया को बदलने की हिम्मत जुटानी थी!
तुम बुद्ध हो जाना चाहते थे!
तुम्हें रहस्यों के भीतर समाना आता है
और तुम लौटते हो वहाँ से शून्य होकर
और मैं उसी शून्य में समा जाना चाहती हूँ हर बार
ताकि तुम्हें फिर से जिन्दा कर सकूँ!
कुछ निकलना चाह
रह था मेरे भीतर से
शायद वो फूल सा
कोमल होता,
शायद वो एक
सुंदर तस्वीर होती
पर मुझपर
बंदिशें लगती रही!
एक दिन खुद को
टटोलने बैठी तो
ढेर सारे सूखे फूल,
रंगों की टूटी हुई बोतलें
और कुछ भरभराई सी
आवाज़े निकलीं ।
मैंने मन की सतह को
साफ कर दिया
अब वहाँ बस
एक सूनापन है
अब वहाँ कुँवारे सपने नहीं !!
अब वहाँ हकीकत की
बंजर जमीन है!!!
- सीमा
(कुछ पुराने पन्ने)
हाँ, वो कान्हा है
बिना मोर पंख वाला!
उसके हाथों में सुदर्शन चक्र नहीं,
उसके कानों में कुंडल नहीं
ना ही रंग सांवला है
पर वो कृष्ण का रुप है
और ये मेरे मन का वहम नहीं!
कहते हैं ना
पत्थर को भी पूजो तो वो
देवता बन जाता है
मैं भी मन ही मन पूजती हूँ उसे
पर मैं मीरा नहीं,
राधा नहीं
मैं सीमा हूँ
और वो मेरा असीम!
हाँ,
हम सभी को एक कृष्ण चाहिए
अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए!
- सीmaa
हाँ, वो कान्हा है
बिना मोर पंख वाला!
उसके हाथों में सुदर्शन चक्र नहीं,
उसके कानों में कुंडल नहीं
ना ही रंग सांवला है
पर वो कृष्ण का रुप है
और ये मेरे मन का वहम नहीं!
कहते हैं ना
पत्थर को भी पूजो तो वो
देवता बन जाता है
मैं भी मन ही मन पूजती हैं हूँ उसे
पर मैं मीरा नहीं,
राधा नहीं
मैं सीमा हूँ
और वो मेरा असीम!
हाँ,
हम सभी को एक कृष्ण चाहिए
अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए!
- सीmaa
एक दिन जब मैं
बहुत उदास थी
सूखी पडी धरती पर
कुछ आँसू की बूँदें टपक पडी थी...
वहीं पर एक बीज दबा पड़ा था ..
नमी पाकर बीज ने अंगड़ाई ली।
वहफूट पडा।
वह रोज अपना रुप बदलता रहा
उसने पौधे की शक्ल ले ली।
एक दिन उस पौधे में
कुछ फूल निकल आए।
पौधा सज गया।
धरती निखर गई।
अब एक साथ सब मुस्कुरा रहे हैं...
.... धरती, पौधा, फूल
और फूलों को देखकर मैं।
आँसू भी व्यर्थ नहीं जाते
कभी-कभी।
- सीmaa
जिंदगी के रंगमंच पर!
---------------------------------------------
मैंने हमेशा जीना चाहा
एक अदाकारा की तरह
जो अपने हर संवाद
बखूबी बोलती हो
हर दृश्य को
भली भांति समझती हो।
जीती हो पल-पल को
जो अभिनय नहीं करती
बल्कि समा जाती हो पात्र में
जिसके अंग-अंग से झलकती हो
उसकी भूमिका।
हाँ, जिंदगी एक रंगमंच है
और हम सभी किरदार
पर मैं नहीं बन पाई
एक अच्छी अदाकारा
मै तो हर वक्त
अटकती रही संवादों में
उलझती रही
बदलते दृश्यों के साथ ।
काश कि मैं हो पाती
एक अच्छी अदाकारा।
खींच लेती
कमजोर कहानियों को भी
अपने दमदार अभिनय से।
भर देती उनमें जीवंतता
और हिट हो जाती
जिंदगी के रंगमंच पे
एक और
जीवंत कहानी।
-सीmaa
आज अचानक कहीं से
फिर लौट आई उदासी
सुबह फीकी-फीकी लगी
चिड़ियों की चहचहाहट का
कोई असर नहीं हुआ मन पर
फूल-पौधों को भी निहारने का मन नहीं हुआ
ये उदासियाँ यूँ ही बेवजह नहीं लौटती होगी ना!
हमारी खुशियों को आराम देने के लिए
लौट - लौट आती हैं ये!
- सीमा
तुम्हें नहीं पता
मैं एक बार फिर से
सीख रही हूँ चलना!
हाँ, इस बार
मैं तुम्हारी नजरों से
देख रही हूँ दुनिया!
तुम्हें नहीं पता
मैं तुम में ही
उतर रही हूँ
धीरे-धीरे!
हाँ, मैं तुम में ही
ढ़ल रही हूँ
धीरे-धीरे!
- सीमा
कौन रहता है
मेरे साथ हमेशा....
...... तेरी बातें....
हाँ, वही बातें
जो थोड़ी सी खट्टी हैं
और थोड़ी सी मीठी!
- सीमा
हम खुद से
कितनी उम्मीदें पाल
बैठते हैं,
कुछ देख सुन के,
कुछ अपने शौक के,
कुछ अपने स्तर के,
कुछ अपनी सहुलियत के।
रोज भगाते हैं
अपने आसपास से
मक्खियों की तरह भिनभिनाती
नकारात्मकता।
रोज छांटते हैं
निराशा के बादल।
खुश होने के बहाने
ढूंढते रहते हैं
इधर-उधर से।
इतिहास,भूगोल,गणित
सबसे लड़ते -भिड़ते
निकालते हैं
अपने लिए
सुकून भरा चाँद
और सो जाते हैं
एक राहत भरी
सुबह की खातिर।
हम रोज उलझे हुए
बालों की कंघी करते हुए
देना चाहते हैं
उन्हें एक नया विन्यास।
हम रोज बिगड़ते हैं,
हम रोज संवरते हैं।
- सीमा
चलो पन्ना - पन्ना दिल की किताब का हम पढ़ते हैं,
फिर थोड़ा और उघड़ते हैं, थोड़ा बिखरते हैं!
- सीमा
निराशा को जगह
मत दो,
क्रोध उत्पन्न करो।
उन एक-एक
सिसकियों को
याद करो
जो देती रही घुटन,
उस एक-एक
तिनके में
आग लगाओ
जो भेदते रहे तुम्हें।
निराशा को जगह
मत दो,
क्रोध उत्पन्न करो।
- सीमा
तुम हर बार
अनसुनी करते रहे
अपनी छटपटाहट को,
तुम हर बार
पनाह देते रहे दर्द को
बहुत कचरा
जमा हो गया ना!
अब एक ही
रास्ता है
या तो खुद को
दफन कर दो
या बिखरा दो
दर्द का हर हिस्सा
कि
जहाँ से आया था
ये वहीं चला जाए वापस !
- सीमा
प्रेम का पौधा
***********
प्रेम का पौधा
बड़ी तेजी से
सूख रहा है,
कुछ फूल आखिरी
सांस ले रहे हैं।
समय पर टकटकी लगाए
खड़े हैं यम।
कुम्हलाए हुए
फूलों का रंग और भी
सूर्ख लग रहा है।
ओह! दुनिया का सबसे
प्यारा शब्द लुप्त हो रहा है।
लोभ,छल,मद बेफिक्री से
घूम रहे हैं।
सौंदर्य और धन के
चारों ओर इकट्ठा लोग
ठठा रहे है और
प्रेम प्यासे लोग
जिंदा लाश से बस
जी रहे हैं।
प्रेम तुम्हारी मृत पड़ी देह को
मैं यूँ मिटने ना दूंगी ।
मैं तुम्हारी आत्मा को रोज
बुलाऊँगी।
अब आत्मा से आत्मा का
एकाकार होगा।
प्रेम ,तुम फिर जन्म लेना
प्रेम बनकर।
- सीमा
चेहरा बदल रहा है
धीरे-धीरे!
अब लोग मुझे परखेंगें
तुम्हारे हिसाब से
सोचती हूँ अब
नकाब में रहूँ
कि कोई बेनकाब ना
कर पाए मुझे!
हाँ,
आजकल तुम्हारी सूरत
नजर आने लगी है मुझमें!
- सीमा
मौन था तेरा प्रेम
कि उलझनें बहुत थी तेरी राहों में और
कांधे जिम्मेदारियों से भारी थे
अपने सपनों को कच्चा - पक्का पका कर
तुम कभी सुस्त, कभी तेज
चले जा रहे थे और
मुट्ठी भर मेरा प्रेम भी रख लिए थे
अपने साथ!
मैं भी बस इसी बात से खुश हूँ कि
तुम्हारे पास ही हूँ मैं!
- सीmaa
उन दिनों जब उसमें इतनी शक्ति थी कि
वो विद्रोह करती उसने
सहनशीलता के पाठ को पढना जारी रखा।
सहते - सहते एक दिन उसकी सारी शक्तियाँ खत्म हो गई
अब वह दुनिया में अर्थ ढूंढ रही है अपने जिंदा होने का।
किसी ने उसे कर्मो का लेखा - जोखा पढ़ाया
उसने संतोष कर लिया।
पर कुछ दिनों से फिर बगावत के कुछ राग
उसके आसपास मंडरा रहे हैं
इस बार वह उसे व्यर्थ नहीं जाने देगी
इस बार सारे सवालों के जवाब वह पाकर रहेगी
ऊपर वाले तुम तैयार हो ना
कि इस बार साक्षात्कार की बारी तुम्हारी है।
- सीमा
पलाश
#####
राह चलती एक स्त्री
अचानक ही थम जाती है
जब पलाश के पेड़ से उतरकर
एक फूल सीधे उसके जूड़े में
अटक जाता है!
उसका सादा पड़ा चेहरा
दमकने लगता है!
पलाश का फूल
मुस्कुराता है कि
जीवन में रंग भरना
आता है उसे!
वो रंग देकर चला जाता है!
जब मौसम करवट लेता है
तो पलाश नजर नहीं आते पर
उनके रंग हमेशा याद आते हैं!
- सीमा श्रीवास्तव
घर के धूल - जाले झाड़ते हाथ
सहसा रुक जाते हैं
जब
एक औरत
अचानक देखती है
अपना मुरझाया सा चेहरा!
अपने मन में बैठे जाले को भी वो
साफ - साफ देख पा रही है आईने में!
- सीमा
अपने जीवन के किसी एक पड़ाव पर
अक्सर औरतें बदलती हैं अपना रुप
अपनी देह पर चिपके केंचुल को
झटक कर वे
आगे बढ़ती हैं और
आईना हैरान रह जाता है
उनकी सूरत देखकर!
- सीmaa
कहते -सुनते
बड़ी हो गई मैं,
सहते-सहते
बड़ी हो गई मैं,
कितना समझा
कितना जाना
फिर भी रहा
बहुत कुछ अनजाना।
सब की परिभाषाओं को पढ़ते
आकर कहाँ खड़ी
हो गई मैं।
बहुत कुछ
छोड़ आई मैं पीछे
बहूत कुछ समेट रक्खा है
खुद में।
कितनी बार गिरी हूँ
देखो
फिर भी तन के
खड़ी हो गई मैं।
रोते-रोते बड़ी
हो गई मैं,
हॅसते-हॅसते बड़ी
हो गई मैं।।
- सीमा
अपनी परछाईयों से
भागते हुए
किसी से टकरा जाते हम एक दिन
और फिर उसे थाम कर
बैठ जाते हैं।
फिर आसपास क्या चल रहा है
नहीं दिखता।
अपनी परछाईयाँ भी
तब गायब हो जाती हैं।
हम वही थम जाते हैं
और वक्त रुक जाता है मानो!
- सीमा
कुछ लड़कियाँ अपने प्रेम को
चीनी के डब्बों में छुपा कर रखती हैं
चाय की पत्तियों के साथ उबाल कर कत्थई कर देती हैं,
गमलों की मिट्टी में मिला देती हैं
कि फूलों का रंग चटक हो!
कुछ लड़कियाँ बस इंतजार करती हैं
कि वो इजहार नहीं कर सकतीं!
- सीमा
एक ही दिन में
नदी, झील, समंदर
कितने रुप
धर लेती हूँ मैं....
.. हाँ स्त्री हूँ मैं.......!
- सीमा
गुलमोहर की लालिमा देती मन भरमाए
छाँव उसकी बैठ कर लेते सब सुस्ताए
है गुलाब सुन्दर बहुत पर
रहते हम इससे दूर
काँटो वाले तन हैं इसके
देता घाव लगाए!
- सीमा
पूछना उस नदी से कि ठहरा हुआ
जल कैसा दिखता है!
फिर भी ना जाने किसके इंतजार में
कभी - कभी रुक जाती हैं नदी!
नदी बन जाना चाहते हैं जज्बात
ये बहते हैं तो रूकते ही नहीं!
उम्मीदें हर बार बढ़ती ही चली जाती हैं!
- सीमा श्रीवास्तव
यादों की नदी से बाहर तो आ जाती हूँ
पर किनारों पर बहुत फिसलन है
मैं फिसल कर फिर पहुँच जाती हूँ तुम तक!
सारा जादू तुम्हारी मुट्ठियों में बंद था...
... अब वो हवाओं में बिखर गया है
पर हवाएँ कहाँ रुकती हैं किसी के पास भला!
तुम्हारे खत कभी पुराने नहीं दिखते
उनकी खुशबू भी कागजी नहीं बिल्कुल
कुछ खत इत्र की मानिंद महकते हैं!
- सीमा