Saturday, February 25, 2017

साक्षात्कार


उन दिनों जब उसमें इतनी शक्ति थी कि
वो विद्रोह करती उसने
सहनशीलता के पाठ को पढना जारी रखा।
सहते - सहते एक दिन उसकी सारी शक्तियाँ खत्म हो गई
अब वह दुनिया में अर्थ ढूंढ रही है अपने जिंदा होने का।
किसी ने उसे कर्मो का लेखा - जोखा  पढ़ाया
उसने संतोष कर लिया।
पर कुछ दिनों से फिर बगावत के कुछ राग
उसके आसपास मंडरा रहे हैं
इस बार वह उसे व्यर्थ नहीं जाने देगी
इस बार सारे सवालों के जवाब वह पाकर रहेगी
ऊपर वाले तुम तैयार हो ना
कि इस बार साक्षात्कार की बारी तुम्हारी है।
- सीमा

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