कभी -कभी
खुद की अपूर्णता से
हम अजीब सा भारीपन
महसूस करते हैं।
एक मक्के का पौधा भी
कितना अपूर्ण होता है ना
जब तक उसकी देह पर
दाने नहीं जम जाते।
वह तब तक अपने
खालीपन को झेलता है
जब तक वह ठोस
भुट्टे की शक्ल नहीं ले लेता
और तब वह भारी हो कर भी
खुद को बहुत हल्का पाता है
कि उसे पूर्णता जो मिल जाती है।
- सीमा