Saturday, December 3, 2016

बचपन

मुझे पता है कि
तुम अब पहले की तरह नहीं
खिलखिला सकते.
मुझे पता है कि तुम
नहीं मल सकते
अपने चेहरे पर वह
पहले सा भोलापन!
तुम तो इतना बदल चुके हो कि
आईना भी परेशान है!

पर  मैं आज भी तुम्हारे
बचपन की तस्वीर देख कर
फिर से एक छोटी बच्ची बन जाती हूँ!
सुनो,
मैंने अपनी यादों में
छुपा रखी है तुम्हारी मासूमियत!

कभी बचपन याद आए तो
मेरे पास चले आना!
बडा सहेज कर रखा है उसे  मैने!
- सीमा

Monday, November 28, 2016

मन का अल्पविराम

मन का अल्प  विराम
^^^^^^^^^^^^^^^^
कई बार ऐसा होता था

एक ठहराव सा आता था

पर फिर खुद ही बहने लगती थी

मन की धारा ,

हाँ, हर बार कोई ताकत

देती थी मेरा साथ

और खुशियो का सिरा

आ जाता था मेरे हाथ

मन फिर से हँसने लगता

और रम जाती  मैं

अपनी दीन दुनिया मेँ

जलने लगते थे दीप पूजा के ,

हटने लगते थे

धूल और जाले और

सज जाते थे बच्चों की

शरारतो से उजड़े सोफे और कुशन!

पहले तो मन नहीं था बैठा रहता

मुरझाया चेहरा देख के इस तरह!

ढूँढता था वो गुलाब जल ,चन्दन,

पढता था नए - नए ब्यूटी टिप्स।

अपनी ही बातों को काटता

फिर अपनी ही बातो को मानता

बढ़ता रहता था मन।

अपने बच्चो को डाँटकर
फिर उन्हें मनाता  मन

अब चुपचाप देखा करता
है उन्हें  ,
रोकता-टोकता नहीं!!

क्या ये भी मन का अल्प विराम है ?

हाँ, ये मन का अल्प विराम ही  तो है

ऐसा होता रहता है,

मन रूकता - बढ़ता रहता है ।
देखो ना .......

बच्चे अब बड़े हो चुके  हैं,
कि यूँ ही

रूकते - भागते बढती जाती है जिंदगी

यूँ ही रूठते-मनाते गुजर जाती है जिंदगी

इन अल्प विरामो से कभी  मत घबराना

कि जिंदगी का नाम है चलते जाना ।

- सीमा श्रीवास्तव

Thursday, November 10, 2016

गुड़िया


जब छोटी थी
तब रहती थी मस्त
अपने आप में।
अपनी गुडियों के मेकअप से ही
फुर्सत नहीं थी मुझे।
घंटो गुडियों को सजाती ,
निहारती , दुलारती ।

धीरे-धीरे किताबो के शब्द बढने लगे,
गणित के प्रॉब्लम्स में हम उलझने लगे।
गुडिया छूटी और अपना चेहरा सामने आया।
भगवान् की बनाई अपनी मूरत में
फेर-बदल की कोई संभावना ना थी
पर लोगों की रोज - रोज की टीका-टिप्पणी ने
इतना तो  समझा दिया कि
समाज में रहने के लिए
खुद को भी गुडिया बनाना कितना जरुरी है।

इन ब्यूटी पार्लरस की भीड़ यूँ ही नहीं है ना!
नहीं चलते आजकल बिना सँवारे हुए आईब्रोज,
नहीं चलते आजकल ग्लोरहित चेहरे।

फैशन की लचीली कमर की तरह हमें भी
लचकना पड़ता है
पुरानी तस्वीरो को फाड़कर
अपने लिए एक नया चेहरा ढूंढना पडता है और
बचपन में सजाई सवारी गई गुडिया की तरह
हमें भी गुडिया बनना पड़ता है!!
- सीमा

Sunday, August 28, 2016

रंग और खुश्बू

            रंग और खुश्बू
**************************

वो फूल उसे खींच कर ले जाता है बरसों पीछे,
वह रंग उसे छोड़ आता है  उसी आंगन में

जहॉ पहली बार इन्द्रधनुष के सात रंगों सी
 सतरंगी हो गई थी जिंदगी।

यूँ तो कितने ही फूल मुस्कुराते हैं आसपास
पर यादों में बसे फूल मुस्कुराते रहते हैं
मन के झरोखों से।

और कुछ रंग दबे रहते हैं
इन्द्रधनुष बनके।
- सीमा 

ओ शाम

ओ शाम!
आओ बैठते हैं
तुम्हारे कांधे पर सर रख के
कि दिन की सारी बातें
तुमको सुनानी है
और तुम्हारे आंचल में बंधे
सारे रंगो को समेटना है।
तुम्हारी छवि को निरखना है
तुम्हारी ही गोद में बैठकर।

ओ शाम!
तुम्हारी आहट का पता ही नहीं चलता
और तुम्हारे जाने के बाद
अंधकार मृत्यु सम लगती है।

तुम आने के पहले जिंदगी की सांकल को
हौले से खटखटा देना और
जाने के पहले भींच के गले लगा लेना।
- सीमा

मिट्टी

मिट्टी
******
कुम्हार के चाक पर
चढ़ी मिट्टी
चौकस रहती  है
अपने हर दबाव पर
कि नाचते - नाचते
ना जाने वह कौन सा रुप ले ले!
फिर वही रुप उसकी
जिंदगी बन जाती है!
- सीमा

Tuesday, August 16, 2016

निवेदन

मुझे पता था कि
जितने ख्वाब देखे जाते हैं

उतने सच नहीं हो सकते
फिर भी मैंने जारी रखा उन्हें देखना,
मुझे पता था  बारिश रोज बहाने बना रही है
फिर भी मैंने जारी रखा उन्हें फुसलाना  ,
मुझे पता था कि बच्चे परीक्षा के कुछ दिन
बचे रहने पर जी-जान लगा कर पढ़ेगे
पर मैंने जारी रखा उन्हें चेतावनी देना,
मुझे पता था कि ईश्वर अपनी
हिसाब -किताब की पुस्तिका हरदम
साफ-सुथरा रखते हैं फिर भी
मैंने जारी रखा निवेदन करना !!
~ सीमा

भ्रम

वो जादू था, भ्रम था,
टूटना था, टूट गया।
मैंने कल यूँ ही
मुहब्बत के
दो, चार शब्द
हवा में उछाले थे।

तुम उसे सच मत
समझ लेना
कि बारिशों के
शहर में
पतंगे कब उड़ती हैं भला
बस कागज की
कश्तियों को देखा है यहाँ
इठलाते हुए!
- सीमा

सुलह


वो लड़ने के
सौ बहाने ढूंढते हैं,
मैं अपनी चुप्पियों से
सुलह कर लेती हूँ!!
~ सीमा

Saturday, August 13, 2016

औरत का संसार


औरत ऊबती हैं सीधी- सपाट जिंदगी से
और गमलों में लगाती हैं कुछ पौधे।

औरत ऊबती है अपनी सूनी हथेलियों से
और रचा लेती है मेंहदी।
औरत ऊबती है अपनी चोटी से और
देती है कुछ नए अंदाज अपने बालों को।

औरतें रंगोलियों से करती हैं अपने मन के रंग रौशन।
और खुद को बहलाने के लिए
रचती है कविताओं में एक नया संसार।

औरत अपनी ऊब से बचने के लिए ढेर सारी
            सुंदरता बिखेर  लेती हैं।

Friday, August 12, 2016

मैं लिखती हूँ प्रेम

मैं लिखती हूँ तितली
तुम उसे 
हाथों में पकड लेते हो!

मैं लिखती हूँ वंसत
तुम रंगो में
डूबने लगते हो!

मैं लिखती हूँ बादल
बिन बरसात तुम
भींगने लगते हो!

मैं लिखती हूँ प्रेम
तुम जाने क्या
महसूस करते हो!
सीमा

पत्थर

बालू में सने
तरह,तरह के पत्थरों में से निकले
कुछ अंडाकार पत्थरों को
पूजा जाने लगता है।
बाकी बच्चों के खेलने के काम आता है!
मगर पत्थर इन बातों से
बेखबर रहते हैं
ये तो  हम हैं जो
अपनी आस्था से ,
प्रेम से
पत्थरों को भी
मोम बनाने में लगे रहते हैं
पर मोम जैसे इंसान को भी
पत्थर बनाने की कला में 
माहिर होते हैं हम!!
~ सीमा

वो जरा सा प्यार

वो जरा सा प्यार
जो उसने  तुमसे
पाया था
अभी तक
बसा    है
उसके  गालों की
लाली में ,

यूँ तो जिंदगी की
भाग दौड़ में
कितनी कीमती चीजें
गुम हो जाती हैं !!

- सीमा

Thursday, August 11, 2016

जरा देर तक

इश्क  मे पगडंडियॉ
ना हो तो
लचक कैसे आए ?
ये लुकने,छुपने का
दौर चलता रहे
जरा देर तक !!
ये हंसने,रोने का
दौर चलता रहे
जरा देर तक !!

- सीमा

Saturday, August 6, 2016

हलाल किए जाने तक

फार्म के मुर्गे,  मुर्गियां उंघ रहे हैं, 
एक दूसरे से सट कर प्रेम की उष्मा ले रहे हैं।

  उन्हें अपने हलाल होने की
खबरअच्छी तरह है

पर इस इंतजार में भी
नींद आ ही जाती है ना!
- सीमा

खुदगर्ज

बस्तियां जल गई
किसी ने परवाह ना की,
जंगल जल गए
किसी को खबर ना हुई
आग जब अपने घर में लगी
हम चौंक के जागे!
- सीमा

ख्याल


तुम कुछ नहीं बस एक ख्याल थे,
एक स्वप्न थे जो
इस दुनिया से परे ले जाता है।
समय- असमय
जिसे देखकर
उस स्लाइड वाले झूले से
फिसलने जैसा एहसास होता है
जहॉ ऊपर से नीचे की तरफ आना ही
आनंद  है!

ओह!
हकीकत से पहले ये
ख्याल  चुपके से
क्यों चले आते हैं!!

-  सीमा
(उम्र के एक पड़ाव से उठा के लाए गए कुछ एहसास)

डर

डर कितना स्वाभाविक होता है ना!
इसी डर के कारण हम चैन से जी नहीं पाते...
जलने, कटने, छिलने से बचते - बचते हम
मौत तक का सफर तय करते हैं
और फिर पूरी तरह जल जाने तक
हमारी आत्मा  वहीं
प्रतीक्षा करती रहती है
उसके बाद वह शुरू करती है
अपने नए सफर की तैयारी।

फिर से नए डर,  नए घर, नए तन की
एक नई शुरुआत होती है!
जीवन चलता रहता है!
- सीमा
(इतने सारे डर के साथ एक अकेले हम)

नदी और सूरज

भोर की बेला में नदी के तन पर
सूरज जब अपने सात
रंग बिखेरता है
नदी थोडी देर के लिए
अपनी सादगी भूल कर इठलाने लगती है।

भोर की प्रथम बेला में नदी
कितने ही परिधान बदलती है।

दुपहर में सूरज की  गर्मी को
समेटती नदी
देती है अपनी सहन शक्ति का इम्तिहान
और सूरज गर्व से मुस्कुराता है।

सांझ की बेला में सूरज फिर अपने
रंगों का जादू बिखेरता है और नदी
उसकी तपिश को भूल
उसके रंगो में रंगी चली जाती है
सूरज भी मंत्र मुग्ध सा उतरता
चला जाता है उसके ही भीतर कहीं!

नदी स्नेह से उसे अपने आँचल में समेट लेती है!
- सीमा

उम्मीद

वह रात की स्याही से
दिन   का गुणगान करती
और दिन की रोशनी चुराकर
रात को चमकाती।

वह हर शब्द से उम्मीद निकालती,
इंतजार में अपनी मेंहदी के रंग और चटक करती
और खुश्बू से अपने स्वप्न महाकाती।

वह अधखिली कलियों को चूमती
और खिलने पर
उन्हें दूर से निहारती।

एक दिन वह अपनी उम्मीद
उदास लडकियों में बाँट आई।
उसने उनकी हाथों में
अपने हाथों से मेंहदी लगाई।

अब खुश्बू फिजाओं में बिखरेगी
और प्रेम के कत्थई रंग चर्चे में होंगे।
वह दूर खड़ी खुशियों का आनंद ले रही है।
सीमा

आईना

एक टूटे हुए आईने में
मुझे  सच्ची तस्वीर दिखी!

आईना जब टूटता है तो
हम उसे दूर फेंक आते हैं
पर हम अपनी टूटन
अपने किरचों के साथ ही
जीते रहते हैं!
ना जाने अपने भीतर
कितने किरचों को छुपाकर
रखते हैं हम!
सीमा

शांति

मैं जब भी पढ़ना चाहती हूँ
अपने मन के गहनतम भाव
कोई ना कोई चिडिया आकर टोक देती है ,
भंग कर देती है मेरी शांति
चिडिया चाहती है कि मैं
उसकी तरह चूँ-चपड करती रहूँ
कि शांति की तलाश में
बहुत बार लोग
भटक जाते हैं।
सीमा

Wednesday, May 25, 2016

सपनों का राजकुमार
************************
प्रेम की डगर पर
उसका हाथ थामने
आया था उसके
सपनों का राजकुमार
बिल्कुल सपनों वाला 
वह भी उसके घोड़े पर
खुशी -खुशी चढ़ कर
चली आई उसके महल
पर कर्तव्यों से बंधा राजकुमार
उसे वहीं छोड़ कर
करता रहा अपने कर्तव्यों का निर्वाह
उसके पास वक्त की कमी थी
जिम्मेदारियाँ ज्यादा थीं।
वो अपने शासक पिता का
आज्ञाकारी राजकुमार था,
अपनी रानी माँ का अनुशासित बेटा था,
अपनी प्रजा का दुलारा राजकुमार था
पर वो यह भूल गई थी कि
वो कौन है
उसने जिसका हाथ थामा वो कौन था,
वह यह भूल गई थी कि उसकी
पसंद क्या थी!!
उसके सपनों की मंजिल कहाँ थी!!
वो सब कुछ भूल कर अब कुछ भी नहीं थी।
एक साया सी वो
इधर-उधर भटकती और
उसका प्राण
राजकुमार की मुटठी में था।
उस राजकुमार ने
बहुत नाम कमाया
उसने बहुत प्रशंसा कमाई
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा
वह प्रेम के डगर की
कहानी को भूल चुका था
राजकुमार ने अपना
सुनहरा वक्त भी
सबमें बाँट दिया
और साथ ही बाँट दी
उस प्रेम पिपासी की
सारी खुशियाँ
हर कोई उसकी
महानता की गाथा गाता
और राजकुमार
खुश हो जाता।
{इस दास्तान का मूल संदेश है
कि एक राजा के सफलता के पीछे
उसकी रानी के प्रेम की कुरबानी होती हैं।}
~ सीमा

घरेलू औरत


सुनो दुनिया वालों ,
हमें यूँ ही 
रहने दो,
डरी,सहमी
गृहणि बनकर।
हमें घर से
बाहर मत निकालो!!
हम अपनी गोल घड़ी की तरह
घर की दीवारों से
जकड़ी रहना पसंद करती हैं।
हमें अपरिचित चेहरों के बीच
कुछ अजीब सा लगता है ।
हमें भीड़ में अक्सर खो जाने का
डर लगता है
कि घर में रहती औरतें
बहुत सुरक्षित होती हैं।
हाँ ,उन्हें सुरक्षित रखा जाता है
ताकि घर सुरक्षित रह सके।
उन्हें घर में भी सुरक्षित
रहने के लिए ढेर सारी
हिदायतें दी जाती हैं।
उन्हें दो दिनों की यात्रा पर
कहीं जाना हो तो
घर वाले उदास हो जाते हैं।
वे खुद भी
अपने बच्चों,पति,
पेड़-पौधों,पेटस के
बगैर नहीं रह पातीं।
उन्हें अपना तकिया,
अपना बाथरूम बेहद पसंद होत है।
सच कहूँ तो एक औरत को
घरेलू बना दिया जाता है
पर इसे बांध कर रखना नहीं कहते ।
इसे बंधन का आदी होना कहते हैं!!
~ सीमा

दीया

जलता हुआ दीया
*******************
कितनी बार अपनी लौ को
तेज हवाओं से बचाने के लिए
अपने हाथों से ओट लेती हूँ 
मन की बाती को नेह में
भिगोकर रखती हूँ,
हर पल हौले -हौले
मुस्काती हूँ ताकि
रौशन होता रहे
मेरे उम्मीदों का घर।
हूँ तो मैं एक छोटे से दीए जैसी
पर अपने घर की रोशनी हूँ मैं
खुद को जिन्दा रखती हूँ
ताकि ये घर हरा-भरा रहे!
खुद जलती हूँ
कि कोना,कोना
चमकता रहे!!
~ सीमा
आत्मविश्वास 
*********************
बहुत दिनों तक
थम गई थी मैं,
मन को अपाहिज करके ,
सूनी आँखों से
दुनिया देखती ,
भारी कदमों से
रूकती,बढती।
फिर एक दिन खुद ने
खुद को फटकारा,
कितनी लड़ाइयाँ चली
भीतर -भीतर
बहुत कुछ बिखरा
इधर -उधर
और जो बचा
वो बहुत काम का था।
मेरा आत्मविश्वास
अब मेरे साथ था
अब आँखों में चमक थी
रास्तों का डर नहीं था अब
सच,
विश्वास की लाठी हो तो
सफर में डरना कैसा !!
~ सीमा

Thursday, May 19, 2016

         अनुभव 
***********************
रोज कुछ नए
अनुभव इकट्ठा कर रही हूँ
ओर हर सुबह भूल जा रही हूँ
पिछली कड़वाहटों को।
बातें करने के दरम्यान
कितनी बार अपनी
अज्ञानता छिपाती हूँ
कि दुनिया बहुत बड़ा जंगल है
और मैं अभी तक
अपने बागीचे के
खर -पतवार ही उखाड़ रही थी !!
~ सीमा
          उलाहने 
******************************
कभी -कभी बहुत सारे उलाहने
कानों में खुद ब खुद
सुनाई देने लगते हैं
हम अनजाने में कितनी दफे 
छोटी -छोटी गलतियाँ करते रहते हैं
और एक दिन जब एहसास होता है तो
खुद ही घिर जाते हैं अपराध -बोध से
और तभी कानों के आसपास
मच्छरों की तरह
भुनभुनाने लगते हैं ये उलाहने
यह और कोई नहीं
हमारे अंदर का शिक्षक होता है।
हमारी सारी गलतियों का
हिसाब उसके पास होता है
और हम बदमाश बच्चे की तरह
भागते रहते हैं
~ सीमा
मैं खोजती थी
अपने आसपास
प्यारे -प्यारे एहसासों से
भरे लोग
पर मुझे कड़वाहटों में डूबे लोग मिले 
अब सफर में क्या रख़ू्ँ,क्या छोड़ूँ
रोज जूझती हूँ
क्या दिखाऊँ,क्या छिपाऊँ
रोज सोचती हूँ!!
सच ,अच्छी स्मृतियों का धरोहर
किस्मत वालों के पास होता है!!
- सीमा 

Saturday, May 7, 2016

सोचने के क्रम में
कितना कुछ
सोच जाती हूँ।
कभी -कभी 
ढ़ेर सारी खुशियाँ
बटोर लाती हूँ
और कभी
पहुँच जाती हूँ
दर्द के पोखरों के पास .....
कितने ही लोगों के दर्द
भाँप लेती हूँ,
देख लेती हूँ
उनका छटपटाता ह्रदय
कितनी दफे
डूबती -उतरती
 सबकी खुशियों में
शरीक होती रहती हूँ
 चुपके से !!
- सीमा 

सलाखें


तुम्हें नहीं दिखती होगीं ना
मेरे चारों तरफ खड़ी
सलाखें.....
दिखती तो वे
मुझे भी नहीं 
बस महसूस होती हैं
हम सभी ऐसी ही
तरह-तरह की
सलाखों के भीतर हैं
यहाँ खुशी भी है और
घुटन भी !!
हम अपनी -अपनी
सलाखों को कस के
पकड़ कर रखते हैं
एक सुरक्षा-कवच है ये !
हमारे चारों तरफ
फैले जंगल से ये
बचाती है हमें !!

~ सीमा

Thursday, April 14, 2016

बादल और नदी

वो बादल था , वो थी एक नदी !
जब - जब बरसता बादल नदी इतराती , अपना विस्तार पाती !
फिर कुछ दिनों तक बादल बरसा ही नहीं !
नदी उदास रहने लगी
बादल भी बरसना चाहता था पर वो मजबूर था !
कि बारिशो के मौसम जा चुके थे ! बादल को लौटना था अपने गाँव वो उदास मन से निकल चुका था 
नदी शांत हो गयी थी ! कुछ दिन तड़पने के बाद !
मौसमो का आना -जाना यूँ ही लगा रहता है !
दोनों यह समझ चुके थे ! (बादल और नदी दोनों समझदार थे )
- सीमा
ढाई ही अक्षर
********************
छिपा था प्यार जिसमें वो
थे ये ढाई ही अक्षर,
बसा था दिल में तेरे जो वो थे ये ढाई ही अक्षर।
बहक के जब जुबां से शब्द कुछ ज्यादा निकल गए, तमाशा बन गए देखो फिर वही ढाई ये अक्षर ।
जमा कर लो मुहब्बत की इस मीठी जुबानी को देगें राहत दर्द में हमारे ढाई ये अक्षर ।
- सीमा

Thursday, April 7, 2016

     दुपट्टे 
************
लड़कियाँ टाँकती हैं गोटे,
लटकाती हैं छोटी -छोटी लडियाँ,
गूंथती हैं तार,सीप,मोती ।
बनाती हैं झालरें
अपनी पसंद के ।
लड़कियाँ ओढ लेती हैं
सारी सुन्दरता,
बिखेर देतीं हैं
अपने मन के
चुटुर-पुटुर
सारी दुनिया में
और खुश हो लेतीं हैं।
लडकों का मन
अटकने लगता है
उनकी लडियों में,
मोतियों में,
रंग-बिरंगे झालरों में...
कभी -कभी
लड़कियाँ बाँध लेती हैं
गाँठ अपने दुपट्टे में
कि कितनी ही लडियाँ
टूटती रहती है
लहरा-लहरा के,
कितने ही
सीप,मोती
उघड़-उघड़ के
बिखर जाते हैं ।
सुनो ,लड़कियों
तुम अपने
दुपट्टों को
संभाल कर रखना।
इनकी खूबसूरती को
बरकरार रखना।
~ सीमा
   वह लिखती रही 
*************************    

वह लिख जाती थी
बहुत कुछ
खिंचाव,लगाव,प्रेम,
बेचैनी,खुशी,गम,
मिलन, जुदाई दर्द।
वह सदियाँ लिखती थी
और सो जाती थी उसमें,
वह सपने लिखती थी
और खो जाती थी उसमें ।
उसने शब्दों के नाम
जिंदगी लिख दी ।
वह रंगती गयी
हर किस्से
अपनी पसंद की
स्याही से ।
वह जीती रही
 एक साथ
कितनी ही
 जिंदगीयों को ।

- सीमा

Wednesday, April 6, 2016

कहो आज क्या लिखूँ

कहो आज क्या लिखूँ?
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
कहो आज क्या लिखूँ?
मन में पसरा खालीपन लिखूँ 
या तुम्हारे प्रेम की घनी छाँव लिखूँ ।
उम्मीदों से भरे दिन -रात लिखूँ 
या वीरानियों से उपजी शाम लिखूँ।
अपनी दबी सी हँसी में छिपे
एहसास लिखूँ या
तुम्हारी खिलखिलाहटों में छुपे
जिंदगी के राज लिखूँ।
सोचती हूँ मैं कुछ ना लिखूँ
बस बारम्बार तुम्हारा
नाम लिखूँ।
-सीमा

Tuesday, March 29, 2016

खत


कुछ खत
इत्मीनान से पढ़े जाते हैं
कि बड़े करीने से
रंग और खुशबू
रक्खा होता है इनमें!
इनकी पाकीज़गी को
महसूसने के लिए
हम खोजते हैं एकांत
कि शोर-गुल में
कुछ शब्द भी
शर्माते हैं!!

  - सीमा
 परिवर्तन 
#########
परिवर्तन आया है
मेरे अंदर
बहुत सुंदर परिवर्तन ।
कल तक मै
हवाओं का
बाट जोहती रही
जो मुझे छू कर
भर दे ढेर सारी उर्जा।
आज मैं
हवाओं में
मिला देना
चाहती हूँ
ढेर सारा प्रेम,
ढेर सारा आनंद
कि वो फैलाती रहे
प्यार और खुशबू ,
भरती रहे सब में
प्राण वायु ।
चलो हम सब
एक साथ बढ़े
सकारात्मकता की ओर ।
- सीमा

रंग

   
कितने रंग लगे
छूटे,
कितने लोग मिले
झूठे।
रंगे थे मैंने जो
सतरंगी सपने
तेरी बेरूखी से
वो टूटे।
खुशियों की खिड़कियाँ
छोड़ रखी थी खुली 
दु:ख आकर ,चोरी करे
लूटे!!
- सीमा
 साँझ की धूप 
############

  साँझ की धूप सी
ठहर गई हूँ मैं 
आओ सुस्ता लो
तुम भी दो पल 
हमदम
कि जिंदगी की रात
अभी बाकी है
चलो अंधेरे से
लड़ने का दम
भर लें हम ।
- सीमा

वजूद

         वजूद 
***************************
सड़क पर धीमी गति से चल रही
अपनी गाड़ी की खिड़की से
मैं देख रही हूँ
स्त्री के विविध रूप को
कुछ अपनी परिभाषाओं में बंधी,
कुछ परिभाषाओं को लांघती...और
कुछ परिभाषाओं के द्वन्द्व में उलझी
हर स्त्री से मैं
खुद को मिलाती हूँ।
मैं अभी भी अपना
वजूद ढूंढ रही हूँ।
- सीमा

हकीकत

कुछ पुराने पन्ने
############
कुछ निकलना चाह
रह था मेरे भीतर से
शायद वो फूल सा
कोमल होता,
शायद वो एक 
सुंदर तस्वीर होती
पर मुझपर
बंदिशें लगती रही
मैं भी दबाव में
करती रही
सब कुछ
उन्हीं के जैसा....
और दबा रह गया मेरा
मुझमें ही कहीं।
एक दिन खुद को
टटोलने बैठी तो
ढेर सारे सूखे फूल,
रंगों की टूटी हुई बोतलें
और कुछ भरभराई सी
आवाज़े निकलीं ।
मैंने मन की सतह को
साफ कर दिया
अब वहाँ बस
एक सूनापन है
अब वहाँ कुँवारे सपने नहीं !!
अब वहाँ हकीकत की 

बंजर जमीन है!!!
- सीमा

Sunday, March 27, 2016

शब्द


किसी ने मुझे कहा.....
कि तुम शब्दों से
आहत हो तो
शब्दों से जुड़ो।
कि शब्दों में जादू है 
शब्दों में प्रेम है,
शब्दों में अपनापन है,
शब्दों में स्नेह है।
मैं अपनी
तबीयत के हिसाब से
करती रही शब्दों के चयन।
ये शब्द घाव हैं
और मरहम भी हैं।
- सीमा

आरजू


कितने मौसमों का
असर लिए मैं
चल रही हूँ|

लम्हों की
बेवफाइयाँ
सह रही हूँ ।

क्यों हर चेहरा
है नकाब के अंदर
हर रास्ते उससे
मैं उलझ रही हूँ ।

बहुत जी लिया
दफन कर के
आरज़ू .

अब आरजुओं
की खातिर मैं
जी रही हूँ|
- सीमा

इच्छाएं

     इच्छाएं 
##########
कई इच्छाएं
दुबक के सोए-सोए
टेढ़ी हो चुकी हैं।
जब भी टटोलती हूँ
मन को 
ये कुनमुनाती हैं।
इन इच्छाओं के बस
नाम भर रह गए हैं।
अब इनमें वो ललक नहीं रही।
इन आलसी सी
इच्छाओं को
रोज धूप,पानी देती हूँ
कि ये फिर से देह झाड़ कर
चल-फिर सकें
कि बिना इनके जिंदगी
जिंदगी सी नहीं लगती।
- सीमा
परमात्मा
***********
तुम तड़पता छोड़ मुझको
मुस्काते हो फूलों में,
स्वप्न को बिखेर मेरे 
गरजते हो वसूलों में ।
छोड़ के यूँ हाथ मेरा
उड़ते -फिरते बन के पवन।
कलकलाते झरनों में तुम हो
इधर बहते मेरे नयन ।
तुम बना के दुनिया सारी
बन बैठे परमात्मा ,
मैं रही यूँ ही कलपती
छलनी हो गई मेरी आत्मा !!
- सीमा

आस

     आस 
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बहुत सी आस 
मैंने बचाकर रखी थी!
एक दिन जरा
समझदार क्या हुई 
सारे आस 
भरभरा कर गिर पड़े!!
- सीमा


Sunday, March 13, 2016

तड़प


कई बार
तुम्हारी तड़प में जी
उठते हैं मेरे शब्द। 
शब्दों की जमीन को
नम कर देते हैं
दिल में उठे जज्बात
कि तुम एहसासों में भी रहो
तो जीने की उम्मीद
बनी रहती है!!
- सीमा

Monday, March 7, 2016

सास

बड़ी खुशी की बात है
कि अब वैसी सासें नहीं दिखती
जो काम से घर लौटे बेटे को 
थमा देती हैं
बहू में दिन भर मीन-मेख निकालती
अपनी नजरों की ढेर सारी शिकायतें,
बहू की कम पडे तो
उनके माँ,बाप ,मुहल्ले-टोले से जुड़े
फजूल के किस्से।
असल में ऐसी सासें बोझमुक्त सासें थी।
घरेलू बहुओं के आ जाने से
इनका काम-धंधा छीन जाता था।
अब ये बैठे -बैठे करें भी तो क्या!!
जमाना बदल गया।
अब ये जॅाब वाली बहुओं को लाने लगी।
गए सारे मसले,
खत्म हो गए सारे मसाले।
अब ना बहुएं घर में रहती हैं
ना शिकायतें जमा होती हैं।
चलो अपना-अपना
काम किया जाए।
जय राम जी की ।
- सीमा

ख्वाहिश

कुछ छोटी -छोटी
ख्वाहिशें थीं।
बड़ी -बड़ी
उम्मीदों तले
कुचली गईं।
नन्हा सा मन
जो मुरझाया
फिर वो
खिल ना पाया।
- सीमा
जिस दिन तुम जागोगे
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जिस दिन तुम जागोगे
हजारों कविताएँ 
कुलबुला कर 
निकल आएंगी।
जिस दिन तुम 
कुछ कहने की
ठान लो
हजारों शब्द
गोली की तरह
निकल आएंगे बाहर
पर तुम अपने भीतर
एक आग दबा कर
रखते हो
और धीरे -धीरे
राख बनकर
वह तुम्हें भी
मिट्टी में
मिला देती है!
- सीमा

सुख का एहसास


मैंने अक्सर देखा है
उसे रोते हुए ,
किताबें पढते-पढते,
फिल्में देखते -देखते,
किसी से फोन पर
बातें करते -करते ,
अल्मारियों से अपने
पुराने और पसंदीदा
लिबास खोलते -समेटते 

हर बार वजह
बहुत अच्छी होती थी।

हाँ, ज्यादा अच्छी बातें
उसके अंतर्मन को
भिंगो देती थी 

कि कभी -कभी
सुख का एहसास भी
आँखो के झरने से
बह निकलता है!
- सीमा

प्रेम

       प्रेम 
^^^^^^^^^^^^^
इतना ही प्रेम होता
तो अच्छा होता कि
हमें कुछ
खाने की इच्छा होती
और तुम शाम ढले आकर 
रख देते उसे मेरे हाथों में।
मैं भी खुश,तुम भी खुश ।
पर नहीं ना !
हम ढेर सारे ख्वाब
पाल लेते हैं
और ना मैं
खुश रह पाती हूँ
ना तुम!
है ना !!
- सीमा

Friday, March 4, 2016

उसे नही पता था

उसे नहीं पता था
कि सितारों वाली
चमकीली रात के
कल होकर
आग उगलती हुई 
सुबह होती है।
उसे नहीं पता था
कि एक ही दिन में
नियम,कानून की
एक नई किताब
पढनी होती है।
उसे नहीं पता था
कि दुल्हनें
एक दिन का
दिखावा होती हैं।
अब उसे सब पता है
अब उसे सच पता है।
- सीमा
अनकहे जज़्बात
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चन्द अनकहे जज्बात
दबे रह गए थे
मन के 
किसी कोने में !
तुम्हारे यादों की धूल
जो बेवक्त आँखों में
आ पडती थी
और अश्कों की
गंदली सी बूँदें
फिसल आती थीं
हर बार
झाड़ दिया करती थी मैं !
बस एक दिन
वो मासूम से
जज्बात जाने कैसे
टकरा गए मुझसे
और
तुम फिर
उतरने लगे
मन के भीतर !
आओ,
तुम अपनी
यादों को लौटा
ले जाओ
तुम तो
माहिर हो ना
गहराई तक उतर
जाने में!!
----सीमा

प्याली गई टूट


कितनी बार
हम खुद को
बचपन की वह
चंदा मामा की
लोरी गा कर 
बहलाते हैं ,
कितनी बार
प्यालियाँ टूटती हैं
और हम कभी
खुद को और
कभी दूसरों को
नई प्यालियों का
वास्ता देकर
फुसलाते हैं।
इस दुनिया में
प्यालियों का
टूटना लगा ही
रहता है।
कभी हम समझ,जाते हैं,
कभी हम जिद पर अड़ जाते है!!
- सीमा
    मौसम 
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मौसमों का
बदल जाना
अच्छा लगता है
जब आने वाले
मौसम से 
कुछ उम्मीदें हो!
क्या कहूँ,
तुम्हारे जाने के बाद
हर मौसम
एक सा ही रहा।
ना किसी से
उम्मीद रही
ना किसी का
इंतजार रहा।
अब कोई भी
मौसम मुझको
मुझसे छीन
नहीं सकता
हाँ,
बहुत कुछ
बदल कर
चले गए हो तुम!
- सीमा

ख्वाहिश

 ख्वाहिशें
**************
कुछ छोटी -छोटी 
ख्वाहिशें थीं।
बड़ी -बड़ी
उम्मीदों तले
कुचली गईं।
नन्हा सा मन
जो मुरझाया
फिर वो
खिल ना पाया।
- सीमा

सुख का एहसास


मैंने अक्सर देखा है
उसे रोते हुए ,
किताबें पढते-पढते,
फिल्में देखते -देखते,
किसी से फोन पर
बातें करते -करते ,
अल्मारियों से अपने
पुराने और पसंदीदा
लिबास खोलते -समेटते
हर बार वजह
बहुत अच्छी होती थी।
हाँ, ज्यादा अच्छी बातें
उसके अंतर्मन को
भिंगो देती थी !
कि कभी -कभी
सुख का ए
हसास भी
आँखो के झरने से
बह निकलता है!
- सीमा

प्रेम का पौधा


प्रेम का पौधा
बड़ी तेजी से
सूख रहा है,
कुछ फूल आखिरी
सांस ले रहे हैं।
समय पर टकटकी लगाए
खड़े हैं यम।
कुम्हलाए हुए
फूलों का रंग और भी
सूर्ख लग रहा है।
ओह! दुनिया का सबसे
प्यारा शब्द लुप्त हो रहा है।
लोभ,छल,मद बेफिक्री से
घूम रहे हैं।
सौंदर्य और धन के
चारों ओर इकट्ठा लोग
ठठा रहे है और
प्रेम प्यासे लोग
जिंदा लाश से बस
जी रहे हैं।
प्रेम तुम्हारी मृत पड़ी देह को
मैं यूँ मिटने ना दूंगी ।
मैं तुम्हारी आत्मा को रोज
बुलाऊँगी।
अब आत्मा से आत्मा का
एकाकार होगा।
प्रेम ,तुम फिर जन्म लेना
प्रेम बनकर।
- सीमा

आग

एक आग जलाए रखो
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जलाए रखो,
अपने अंदर एक आग
जलाए रखो!
भूख की आग 
फसल उगाती है,

सूरज की आग
फसल पकाती है ।


खुद को जिन्दा
रखने के लिए
तुम्हें भी
जलाए रखनी है एक आग!


- सीमा

पीपल

एक अकेला
पीपल का पेड़ 
नहीं रख सकता
सारी धरती को 
हरा-भरा।
उन छोटे -छोटे
पौधों को भी
पानी दो
वो बड़ी आस से
देख रहे हैं
तुम्हारी तरफ।
- सीमा