कितनी बार
हम खुद को
बचपन की वह
चंदा मामा की
लोरी गा कर
बहलाते हैं ,
हम खुद को
बचपन की वह
चंदा मामा की
लोरी गा कर
बहलाते हैं ,
कितनी बार
प्यालियाँ टूटती हैं
और हम कभी
खुद को और
कभी दूसरों को
नई प्यालियों का
वास्ता देकर
फुसलाते हैं।
प्यालियाँ टूटती हैं
और हम कभी
खुद को और
कभी दूसरों को
नई प्यालियों का
वास्ता देकर
फुसलाते हैं।
इस दुनिया में
प्यालियों का
टूटना लगा ही
रहता है।
प्यालियों का
टूटना लगा ही
रहता है।
कभी हम समझ,जाते हैं,
कभी हम जिद पर अड़ जाते है!!
- सीमा
कभी हम जिद पर अड़ जाते है!!
- सीमा
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