जिस दिन तुम जागोगे
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जिस दिन तुम जागोगे
हजारों कविताएँ
कुलबुला कर
निकल आएंगी।
जिस दिन तुम
कुछ कहने की
ठान लो
हजारों शब्द
गोली की तरह
निकल आएंगे बाहर
पर तुम अपने भीतर
एक आग दबा कर
रखते हो
और धीरे -धीरे
राख बनकर
वह तुम्हें भी
मिट्टी में
मिला देती है!
- सीमा
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जिस दिन तुम जागोगे
हजारों कविताएँ
कुलबुला कर
निकल आएंगी।
जिस दिन तुम
कुछ कहने की
ठान लो
हजारों शब्द
गोली की तरह
निकल आएंगे बाहर
पर तुम अपने भीतर
एक आग दबा कर
रखते हो
और धीरे -धीरे
राख बनकर
वह तुम्हें भी
मिट्टी में
मिला देती है!
- सीमा
पर तुम अपने भीतर
ReplyDeleteएक आग दबा कर
रखते हो
और धीरे -धीरे
राख बनकर
वह तुम्हें भी
मिट्टी में
मिला देती है!
गहन विचारशील शब्द लिखे हैं आपने सीमा जी !!
Dhanywaad..
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