Saturday, May 23, 2015

    आशाएँ
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कितनी बार डूबी हूँ ,

फिर खुद ही
सूरज की किरणों को पकड़
निकल आई हूँ बाहर !

मेरे मन का कोना ,कोना
आशाओ से है ओत - प्रोत !
फिर भी

अपने जिस्म पे उभर आये

जख्मो को देख जब घबड़ा जाती हूँ

मै हो जाती हूँ गुमशुदा ,
खो जाती हूँ , यादो के जंगल मे

और उलझते - उलझते
और भी जख्मी हो जाती हूँ !!

- सीमा

Friday, May 22, 2015

जीने के बहाने



हर लम्हा सुन्दर नहीं हो सकता ,

हर बात अच्छी नहीं हो सकती। 

हर शख्स नहीं मिल सकता  मन मुताबिक़ ,

हर गीत मधुर नहीं हो सकती। 

ना  हर फल होता है मीठा  ,
ना हर फूल होता है  खुशबूदार  

 हम हरदम तलाशते रहते हैं

अपने मन मुताबिक़ ठौर - ठिकाने !
जीने के नित नए- नए  बहाने !!

- सीमा