Sunday, August 28, 2016

रंग और खुश्बू

            रंग और खुश्बू
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वो फूल उसे खींच कर ले जाता है बरसों पीछे,
वह रंग उसे छोड़ आता है  उसी आंगन में

जहॉ पहली बार इन्द्रधनुष के सात रंगों सी
 सतरंगी हो गई थी जिंदगी।

यूँ तो कितने ही फूल मुस्कुराते हैं आसपास
पर यादों में बसे फूल मुस्कुराते रहते हैं
मन के झरोखों से।

और कुछ रंग दबे रहते हैं
इन्द्रधनुष बनके।
- सीमा 

ओ शाम

ओ शाम!
आओ बैठते हैं
तुम्हारे कांधे पर सर रख के
कि दिन की सारी बातें
तुमको सुनानी है
और तुम्हारे आंचल में बंधे
सारे रंगो को समेटना है।
तुम्हारी छवि को निरखना है
तुम्हारी ही गोद में बैठकर।

ओ शाम!
तुम्हारी आहट का पता ही नहीं चलता
और तुम्हारे जाने के बाद
अंधकार मृत्यु सम लगती है।

तुम आने के पहले जिंदगी की सांकल को
हौले से खटखटा देना और
जाने के पहले भींच के गले लगा लेना।
- सीमा

मिट्टी

मिट्टी
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कुम्हार के चाक पर
चढ़ी मिट्टी
चौकस रहती  है
अपने हर दबाव पर
कि नाचते - नाचते
ना जाने वह कौन सा रुप ले ले!
फिर वही रुप उसकी
जिंदगी बन जाती है!
- सीमा

Tuesday, August 16, 2016

निवेदन

मुझे पता था कि
जितने ख्वाब देखे जाते हैं

उतने सच नहीं हो सकते
फिर भी मैंने जारी रखा उन्हें देखना,
मुझे पता था  बारिश रोज बहाने बना रही है
फिर भी मैंने जारी रखा उन्हें फुसलाना  ,
मुझे पता था कि बच्चे परीक्षा के कुछ दिन
बचे रहने पर जी-जान लगा कर पढ़ेगे
पर मैंने जारी रखा उन्हें चेतावनी देना,
मुझे पता था कि ईश्वर अपनी
हिसाब -किताब की पुस्तिका हरदम
साफ-सुथरा रखते हैं फिर भी
मैंने जारी रखा निवेदन करना !!
~ सीमा

भ्रम

वो जादू था, भ्रम था,
टूटना था, टूट गया।
मैंने कल यूँ ही
मुहब्बत के
दो, चार शब्द
हवा में उछाले थे।

तुम उसे सच मत
समझ लेना
कि बारिशों के
शहर में
पतंगे कब उड़ती हैं भला
बस कागज की
कश्तियों को देखा है यहाँ
इठलाते हुए!
- सीमा

सुलह


वो लड़ने के
सौ बहाने ढूंढते हैं,
मैं अपनी चुप्पियों से
सुलह कर लेती हूँ!!
~ सीमा

Saturday, August 13, 2016

औरत का संसार


औरत ऊबती हैं सीधी- सपाट जिंदगी से
और गमलों में लगाती हैं कुछ पौधे।

औरत ऊबती है अपनी सूनी हथेलियों से
और रचा लेती है मेंहदी।
औरत ऊबती है अपनी चोटी से और
देती है कुछ नए अंदाज अपने बालों को।

औरतें रंगोलियों से करती हैं अपने मन के रंग रौशन।
और खुद को बहलाने के लिए
रचती है कविताओं में एक नया संसार।

औरत अपनी ऊब से बचने के लिए ढेर सारी
            सुंदरता बिखेर  लेती हैं।

Friday, August 12, 2016

मैं लिखती हूँ प्रेम

मैं लिखती हूँ तितली
तुम उसे 
हाथों में पकड लेते हो!

मैं लिखती हूँ वंसत
तुम रंगो में
डूबने लगते हो!

मैं लिखती हूँ बादल
बिन बरसात तुम
भींगने लगते हो!

मैं लिखती हूँ प्रेम
तुम जाने क्या
महसूस करते हो!
सीमा

पत्थर

बालू में सने
तरह,तरह के पत्थरों में से निकले
कुछ अंडाकार पत्थरों को
पूजा जाने लगता है।
बाकी बच्चों के खेलने के काम आता है!
मगर पत्थर इन बातों से
बेखबर रहते हैं
ये तो  हम हैं जो
अपनी आस्था से ,
प्रेम से
पत्थरों को भी
मोम बनाने में लगे रहते हैं
पर मोम जैसे इंसान को भी
पत्थर बनाने की कला में 
माहिर होते हैं हम!!
~ सीमा

वो जरा सा प्यार

वो जरा सा प्यार
जो उसने  तुमसे
पाया था
अभी तक
बसा    है
उसके  गालों की
लाली में ,

यूँ तो जिंदगी की
भाग दौड़ में
कितनी कीमती चीजें
गुम हो जाती हैं !!

- सीमा

Thursday, August 11, 2016

जरा देर तक

इश्क  मे पगडंडियॉ
ना हो तो
लचक कैसे आए ?
ये लुकने,छुपने का
दौर चलता रहे
जरा देर तक !!
ये हंसने,रोने का
दौर चलता रहे
जरा देर तक !!

- सीमा

Saturday, August 6, 2016

हलाल किए जाने तक

फार्म के मुर्गे,  मुर्गियां उंघ रहे हैं, 
एक दूसरे से सट कर प्रेम की उष्मा ले रहे हैं।

  उन्हें अपने हलाल होने की
खबरअच्छी तरह है

पर इस इंतजार में भी
नींद आ ही जाती है ना!
- सीमा

खुदगर्ज

बस्तियां जल गई
किसी ने परवाह ना की,
जंगल जल गए
किसी को खबर ना हुई
आग जब अपने घर में लगी
हम चौंक के जागे!
- सीमा

ख्याल


तुम कुछ नहीं बस एक ख्याल थे,
एक स्वप्न थे जो
इस दुनिया से परे ले जाता है।
समय- असमय
जिसे देखकर
उस स्लाइड वाले झूले से
फिसलने जैसा एहसास होता है
जहॉ ऊपर से नीचे की तरफ आना ही
आनंद  है!

ओह!
हकीकत से पहले ये
ख्याल  चुपके से
क्यों चले आते हैं!!

-  सीमा
(उम्र के एक पड़ाव से उठा के लाए गए कुछ एहसास)

डर

डर कितना स्वाभाविक होता है ना!
इसी डर के कारण हम चैन से जी नहीं पाते...
जलने, कटने, छिलने से बचते - बचते हम
मौत तक का सफर तय करते हैं
और फिर पूरी तरह जल जाने तक
हमारी आत्मा  वहीं
प्रतीक्षा करती रहती है
उसके बाद वह शुरू करती है
अपने नए सफर की तैयारी।

फिर से नए डर,  नए घर, नए तन की
एक नई शुरुआत होती है!
जीवन चलता रहता है!
- सीमा
(इतने सारे डर के साथ एक अकेले हम)

नदी और सूरज

भोर की बेला में नदी के तन पर
सूरज जब अपने सात
रंग बिखेरता है
नदी थोडी देर के लिए
अपनी सादगी भूल कर इठलाने लगती है।

भोर की प्रथम बेला में नदी
कितने ही परिधान बदलती है।

दुपहर में सूरज की  गर्मी को
समेटती नदी
देती है अपनी सहन शक्ति का इम्तिहान
और सूरज गर्व से मुस्कुराता है।

सांझ की बेला में सूरज फिर अपने
रंगों का जादू बिखेरता है और नदी
उसकी तपिश को भूल
उसके रंगो में रंगी चली जाती है
सूरज भी मंत्र मुग्ध सा उतरता
चला जाता है उसके ही भीतर कहीं!

नदी स्नेह से उसे अपने आँचल में समेट लेती है!
- सीमा

उम्मीद

वह रात की स्याही से
दिन   का गुणगान करती
और दिन की रोशनी चुराकर
रात को चमकाती।

वह हर शब्द से उम्मीद निकालती,
इंतजार में अपनी मेंहदी के रंग और चटक करती
और खुश्बू से अपने स्वप्न महाकाती।

वह अधखिली कलियों को चूमती
और खिलने पर
उन्हें दूर से निहारती।

एक दिन वह अपनी उम्मीद
उदास लडकियों में बाँट आई।
उसने उनकी हाथों में
अपने हाथों से मेंहदी लगाई।

अब खुश्बू फिजाओं में बिखरेगी
और प्रेम के कत्थई रंग चर्चे में होंगे।
वह दूर खड़ी खुशियों का आनंद ले रही है।
सीमा

आईना

एक टूटे हुए आईने में
मुझे  सच्ची तस्वीर दिखी!

आईना जब टूटता है तो
हम उसे दूर फेंक आते हैं
पर हम अपनी टूटन
अपने किरचों के साथ ही
जीते रहते हैं!
ना जाने अपने भीतर
कितने किरचों को छुपाकर
रखते हैं हम!
सीमा

शांति

मैं जब भी पढ़ना चाहती हूँ
अपने मन के गहनतम भाव
कोई ना कोई चिडिया आकर टोक देती है ,
भंग कर देती है मेरी शांति
चिडिया चाहती है कि मैं
उसकी तरह चूँ-चपड करती रहूँ
कि शांति की तलाश में
बहुत बार लोग
भटक जाते हैं।
सीमा