Saturday, August 6, 2016

नदी और सूरज

भोर की बेला में नदी के तन पर
सूरज जब अपने सात
रंग बिखेरता है
नदी थोडी देर के लिए
अपनी सादगी भूल कर इठलाने लगती है।

भोर की प्रथम बेला में नदी
कितने ही परिधान बदलती है।

दुपहर में सूरज की  गर्मी को
समेटती नदी
देती है अपनी सहन शक्ति का इम्तिहान
और सूरज गर्व से मुस्कुराता है।

सांझ की बेला में सूरज फिर अपने
रंगों का जादू बिखेरता है और नदी
उसकी तपिश को भूल
उसके रंगो में रंगी चली जाती है
सूरज भी मंत्र मुग्ध सा उतरता
चला जाता है उसके ही भीतर कहीं!

नदी स्नेह से उसे अपने आँचल में समेट लेती है!
- सीमा

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