Thursday, February 2, 2017

लकीरें

बैठे ,बैठे अचानक याद आ गया वह खेल

जिसमें हम लकीरें खींच आते थे
अलग- अलग  जगहों पर

और फिर शुरू होती थी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
खोजने की बारी ।
जो जितना कम समय लगाता खोजने में
वो जीत जाता ।

हम सभी जल्दी ,जल्दी   काटते थे
एक ,दूसरे की खींची लकीरें !

ये लकीरों को काटना
सचमुच  खेल था या
इसमे छिपी थी कोई  सच्चाई ।

कहीं ना कहीं हम सभी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
काटते नहीं रहते क्या और
कभी-कभी कुछ
खींची हुई लकीरों के पार भी
जाना चाहते हैं कुछ लोग खेलते-खेलते।

- सीमा श्रीवास्तव

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