Sunday, July 2, 2017

प्रलय


जब अपने लिए
थोड़ी खुशियाँ बटोरने निकली
तब प्रलय-प्रलय का
हाहाकार हुआ!

लोग जब भिड़े  हुए थे
क्रांति  में
मैंनें बीज बोया था प्रेम का,
शांति का!

जिंदगी की
इतनी लड़ाईयाँ लड़ने के बदले
अगर थोड़ा सा भी प्रेम पा सकूँ तो
प्रलय के बाद रुह भटकेगी नहीं!

ये देह मिट्टी में मिल कर भी
चंदन सी महकेगी तब!

- सीमा श्रीवास्तव

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