Sunday, July 16, 2017

साज़िश

तुम जब साजिशें रच रहे होगें
मैं तितलियों के पंखों के रंग गिन रही हूँगीं!

तुम जब पानी में ज़हर मिला रहे होगे
मैं नदी में अपने  पैर डुबो कर
छप-छपाछप कर रही हूँगीं!

तुम जब  दुनिया के सारे मासूम चेहरों को
मसलने की सोच रहे होगे
मैं अपनी कूचीं उठाकर बना रही हूँगीं
नींद से उठकर आँखें मलता एक बालक!

- सीmaa

No comments:

Post a Comment