नहीं पता कि जो हुआ
वो कितना सही हुआ
पर जो भी हुआ
वो होता चला गया!
ये नदियाँ जैसे बहती
चली गईं।
ये पौधे जैसे पेड़
होते गए!
कलियाँ जैसे करवट बदल कर
फूल बन गईं!
पत्थर घिस - घिस के
रेत होते रहे
और समन्दर सूख के
भाप से बादल!
हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ
हाँ, जो हुआ सो सही ही हुआ!
- सीmaa
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