Monday, April 10, 2017

प्रेम उदास है


तुम्हारे शब्द
कितने पवित्र थे ना
मैं हर बार कुछ और
माँग लेती थी।

उन दिनों हम दूर होकर भी
बहुत पास थे ।
तुम्हारी स्नेह और
प्यार भरी बातों से
मेरे अंदर पनपने लगा था प्रेम।
मैंने कितनी दफे
प्रेम के पाँव के
कोमल स्पर्श को
महसूस किया।

महीने चढ़ने लगे
बहुत दिनों तक
हमारा संवाद नहीं हुआ।

मैं खानाबदोश सी
तुम्हें ढूंढती रही
कहाँ,कहाँ!
झेलती रही तन्हाई!

वक्त की गोलाई बढी
मैने बड़े उदास से
दिखने वाले
समय को जन्म दिया।
बड़ा गुमसुम सा
रहता है वो।

तुम आओ और
इसे
अपना प्यार भरा
स्पर्श दो
कि
इतना हक तो है उसका
तुमपर
कि ये उदासी भी तो
तुम्हारी ही देन है!

- सीमा

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