अंतर के वासी
अंतर के वासी
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ये कागज पर जो बिखरे हैं.
मन के आँगन मे निखरे हैं!
नहीं इनकी कोई जात- पात,
मेरे एह्सासों के टुकडे है.
हैं मुझसे ये, मैं इनसे हूँ
मेरे अंतर के वासी ये
हर पल इनको पुचकारूँ मैं
शब्दों के प्यारे मुखरे हैं!
सीमा श्रीवास्तव
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