Monday, September 22, 2014

अंतर के वासी

     अंतर के वासी 
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ये  कागज पर जो बिखरे हैं.


मन के आँगन मे निखरे हैं! 


नहीं इनकी कोई जात- पात,


मेरे एह्सासों के टुकडे है.


हैं मुझसे ये, मैं इनसे हूँ


मेरे अंतर के वासी ये 


हर पल इनको पुचकारूँ मैं


शब्दों के प्यारे मुखरे हैं! 


सीमा श्रीवास्तव 

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