ज्वारभाटा
****************
एक चाह तब ख़त्म हो
जाती है जब नहीं रह जाते
सही रंग ,सही शब्द ,सही लोग
और हौसला,
हाँ हौसले को तो ख़त्म
कर देता है ….......
बार बार उठता ज्वारभाटा,
जो मन की सतह को
तहस नहस कर जाता है
और छोड़ जाता है अंदर की
गन्दगी को बाहर ,मिटा देता है
बरसो की सारी सजावट ,
और मचा देता है एक
ऐसी उथल पुथल कि
समेटना मुश्किल हो जाता है
खुद को .......
सीमा श्रीवास्तव
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एक चाह तब ख़त्म हो
जाती है जब नहीं रह जाते
सही रंग ,सही शब्द ,सही लोग
और हौसला,
हाँ हौसले को तो ख़त्म
कर देता है ….......
बार बार उठता ज्वारभाटा,
जो मन की सतह को
तहस नहस कर जाता है
और छोड़ जाता है अंदर की
गन्दगी को बाहर ,मिटा देता है
बरसो की सारी सजावट ,
और मचा देता है एक
ऐसी उथल पुथल कि
समेटना मुश्किल हो जाता है
खुद को .......
सीमा श्रीवास्तव
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