जिम्मेदारी का बोझ
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मैंने महसूस किया है
अपने दर्द से इतर
पुरुषों का भी दर्द
कि कैसे उनकी
ख्वाहिशें ,उनकी
जिम्मेदारियों तले
दब जाती हैं, कि
जिस चेहरे पर कभी
सजती थी मुस्कान
उस चेहरे की रौनक
चली जाती है
हाँ, एक अंतर्मुखी
पुरुष भी बहुत घुटता है
अंदर ही अंदर.....जब .
वह नहीं बाँटना चाहता
अपने दुःख ,
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मैंने महसूस किया है
अपने दर्द से इतर
पुरुषों का भी दर्द
कि कैसे उनकी
ख्वाहिशें ,उनकी
जिम्मेदारियों तले
दब जाती हैं, कि
जिस चेहरे पर कभी
सजती थी मुस्कान
उस चेहरे की रौनक
चली जाती है
हाँ, एक अंतर्मुखी
पुरुष भी बहुत घुटता है
अंदर ही अंदर.....जब .
वह नहीं बाँटना चाहता
अपने दुःख ,
वह ओढ लेता है
झूठा चेहरा सच के चेहरे के ऊपर
झूठा चेहरा सच के चेहरे के ऊपर
मय के चार घूँट से वो
दर्द के दस घूंट
दबा जाता है
अपने घर वालो के खातिर
अपने खून को बेच
आता है ……
सीमा श्रीवास्तव
हर का अपना अपना दर्द............ सुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मुकेश जी.....:)
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