बेक़सूर
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उड़ जाती हूँ कभी कभी
मन की उड़ान के साथ
इस खारे समुन्दर से बहुत ऊपर
परिंदो वाले नीले चादर पर
चलाती हूँ हुकूमत चाँद तारों पर
और करती हूँ कभी कभी
अपनी मनमर्जी
जिसे वे ख़ामोशी से सुनते हैं
तब हँस पड़ती हूँ मन ही मन.…
पर अचानक ही दिख पड़ते हैं
कुछ उदास से सहमे हुए तारे
तो करने लगती हूँ अफसोस
कि आखिर गलती क्या है इनकी
जो इनपे करूँ मैं मनमर्जी
देखो तो ,कितनी खूबसूरती से
ये हँसते मुस्कुराते हैं
और सीखाते हैं हमें भी
हँसना मुस्कुराना
तब क्यों चलाऊँ इनपर
मै अपनी हुकूमत
क्यों अपने गुस्से को
उतारूँ एक बेक़सूर पर !!
सीमा श्रीवास्तव
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उड़ जाती हूँ कभी कभी
मन की उड़ान के साथ
इस खारे समुन्दर से बहुत ऊपर
परिंदो वाले नीले चादर पर
चलाती हूँ हुकूमत चाँद तारों पर
और करती हूँ कभी कभी
अपनी मनमर्जी
जिसे वे ख़ामोशी से सुनते हैं
तब हँस पड़ती हूँ मन ही मन.…
पर अचानक ही दिख पड़ते हैं
कुछ उदास से सहमे हुए तारे
तो करने लगती हूँ अफसोस
कि आखिर गलती क्या है इनकी
जो इनपे करूँ मैं मनमर्जी
देखो तो ,कितनी खूबसूरती से
ये हँसते मुस्कुराते हैं
और सीखाते हैं हमें भी
हँसना मुस्कुराना
तब क्यों चलाऊँ इनपर
मै अपनी हुकूमत
क्यों अपने गुस्से को
उतारूँ एक बेक़सूर पर !!
सीमा श्रीवास्तव
उड़ते रहो ..............शुभमनाएं !!
ReplyDeleteशुभकामनायें ........
ReplyDeleteThank u Mukesh ji...:)..man aur panchii ek se hi hote hai na...:)
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