Tuesday, September 30, 2014

सन्नाटे की आवाज



रात को सोया हुआ आदमी ,

बार  बार जगता है ,

चौंक चौंक कर उठता है । 

रात के सन्नाटे में हैं 

ढेर सी आवाज़े ,

आवाज़े ,जिन्हे वो नहीं पहचानता 

दिन के शोरगुल में ……… 

 सो नहीं पाता वो सारी रात 

 उन अनजानी आवाज़ों को थाहने मेँ 

सुबह होती है और वो अलसाया सा 

पसर जाता है बिस्तर पर 

सुबह के शोरगुल मेँ छोटी छोटी

 अनजानी  आवाज़े खो जाती हैं …… 

तब  सो जाता है वह 

आराम से , दुनिया   से  बेखबर 

अपनी जानी पहचानी

 आवाजों की दुनिया मेँ । 

सीमा श्रीवास्तव 

(मेरी एक बहुत पहले की रचना जिसे मैंने अपने  अनुभव के आधार पर लिखा था )







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