Sunday, September 28, 2014

गौरैया

                     गौरेया 
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मेरा बचपन गौरैयों के साथ ही बीता । 

ढेर सारी ,कभी इधर से ,

कभी उधर से उड़ती और 

 आपस में ही लड़ पड़ती 

(ज्यादा  होने से लड़ाई भी
 हो जाती है )

तब मैं भाग के जाती ,

हट !कर के उन्हें भगाती 

वो फिर कहीं बैठ कर 

जोर जोर से चिल्लाती । 

मेरी पढ़ाई में भी ये 

ड़ाल देती व्यवधान

जब एक साथ मिलकर  

करने लगती थीं समूहगान 

पर अब गौरैयों का शोर 

नहीं बटाता ध्यान 

 अब तो उनकी 

ची ची   भी सुनने को 

तरस जाते हैं कान 

अरे ! ये तो हो गया कमाल 

देखो जाने कहाँ  से एक गौरैया 

आ गई है 
 उड़ के  

चलो इसे सुरक्षित करें 

और न होने दें इन्हें विलुप्त 

सीमा श्रीवास्तव 




3 comments:

  1. खो न जाये आँगन कि चूँचूँ....

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  2. धन्यवाद मोनिका जी...:,सचमुच इन्हे बचाना बहुत जरूरी है....

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