Tuesday, September 30, 2014

                  मौन 
         () () () () () () () 

तुम्हारे बोलने का तरीका ,

सोचने  का  पैमाना 

बहुत अलग है मुझसे 

तुम ना बोला हुआ भी 

सुन लेती हो अक्सर ,

अपने मन से लगा लेती हो अटकलें ,

अपने विचारों  को ही देती हो अहमियत ,

अपने व्यक्तित्व का ही 

जमाती हो हरदम रौब और 

फिर मैं ना चाहते हुए भी,

बोल जाती हूँ कुछ अटपटा 

चलो अच्छा है ,

कुछ दिनों का मौन धरते हैं 

और उन पलों मेँ एक दूजे को पढ़ते हैं !!!


सीमा श्रीवास्तव 






1 comment:

  1. कुछ छुपती, कुछ छुपाती अत्यंत भाव-प्रवण रचना, सुन्दर!

    ReplyDelete