मौन
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तुम्हारे बोलने का तरीका ,
सोचने का पैमाना
बहुत अलग है मुझसे
तुम ना बोला हुआ भी
सुन लेती हो अक्सर ,
अपने मन से लगा लेती हो अटकलें ,
अपने विचारों को ही देती हो अहमियत ,
अपने व्यक्तित्व का ही
जमाती हो हरदम रौब और
फिर मैं ना चाहते हुए भी,
बोल जाती हूँ कुछ अटपटा
चलो अच्छा है ,
कुछ दिनों का मौन धरते हैं
और उन पलों मेँ एक दूजे को पढ़ते हैं !!!
सीमा श्रीवास्तव
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तुम्हारे बोलने का तरीका ,
सोचने का पैमाना
बहुत अलग है मुझसे
तुम ना बोला हुआ भी
सुन लेती हो अक्सर ,
अपने मन से लगा लेती हो अटकलें ,
अपने विचारों को ही देती हो अहमियत ,
अपने व्यक्तित्व का ही
जमाती हो हरदम रौब और
फिर मैं ना चाहते हुए भी,
बोल जाती हूँ कुछ अटपटा
चलो अच्छा है ,
कुछ दिनों का मौन धरते हैं
और उन पलों मेँ एक दूजे को पढ़ते हैं !!!
सीमा श्रीवास्तव
कुछ छुपती, कुछ छुपाती अत्यंत भाव-प्रवण रचना, सुन्दर!
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