चले जाते हैं
जब कभी दिख जाती हूँ मैं उन्हें
पसीने से तरबतर चेहरे मे या
बिखरे हुये बालों मे
या बिन मैचिंग दुप्पटे में,
हरबडाई सी खोलती
दरवाजे को,
कभी ड्राइंग रूम के बिखरे
कुशन पे हंस देते है,
कभी किचेन मे
फैले बर्तनों पे चुटकी लेते है....
लोगो का क्या है..!
अचानक ही तो घुस आते है,
किसी की भी जिंदगी में अधीर से
और जो दिख पडता है.उससे
ही गढ लेते है आपकी एक तस्वीर...
सीमा श्रीवास्तव
जब कभी दिख जाती हूँ मैं उन्हें
पसीने से तरबतर चेहरे मे या
बिखरे हुये बालों मे
या बिन मैचिंग दुप्पटे में,
हरबडाई सी खोलती
दरवाजे को,
कभी ड्राइंग रूम के बिखरे
कुशन पे हंस देते है,
कभी किचेन मे
फैले बर्तनों पे चुटकी लेते है....
लोगो का क्या है..!
अचानक ही तो घुस आते है,
किसी की भी जिंदगी में अधीर से
और जो दिख पडता है.उससे
ही गढ लेते है आपकी एक तस्वीर...
सीमा श्रीवास्तव
ये तो है....
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है मोंनिका जी...,धन्यवाद...:)
ReplyDeleteसही...एक पल में धारणा बना लेते हैं
ReplyDeleteजी ऋता दीदी...यही तो आहत कर जाता है मन को....
ReplyDelete:(