Saturday, November 29, 2014

मन रो पड़ता है



जब भी कोई सुन्दर फूल 

मुरझा के झड़ जाता है 

मन रो पड़ता है । 

जब भी   ढह जाती है 

 बच्चे की रेत की मीनार 

मन रो पड़ता है । 


जब  कोई तितली, पर 

फड़फड़ाने  से हो जाती है लाचार 

मन रो पड़ता है । 



जब भी दो  दोस्तो के  बीच 

पड़ जाती है दरार 

मन रो पड़ता है ।


हाँ कभी कभी ये मन 

हो जाता है अति संवेदनशील 


कि आँसू जब रूकने से

कर देते हैं इंकार 

मन रो पड़ता है । 

-  सीमा श्रीवास्तव 





6 comments:

  1. अतिसुन्दर
    मन कोमल होता है आसानी से पिगल जाता हैँ।स्वागत हैँ पधारै

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  2. तब दर्द और बढ जायेगा दीदी

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  3. घटना १९७८ की है । करीब अस्सी वर्षीय बुज़ुर्ग को रोज़ी कमाते हुए देखा था । वह तौलिए बेच रहा था । बुज़ुर्ग ने अपने पुराने ग्राहक का कहा~आप दो तौलिए ख़रीद लेंगे तो मेरी एक वक्त की रोटी का बन्दोबस्त हो जाएगा । अपने कमरे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद करके फफक-फफक कर रोया । मज़दूर पिता जी का चेहरा ख़याल में आ गया । दो वर्ष बाद बैंक की नौकरी मिल गयी । अब मैं अपने पैरेन्ट्स के लिए रोटी कमा सकता था । माँ-बाबू जी को गुज़रे चौबीस साल हो गए हैं । मेरी संवेदना कितनी ही बार रुलाती है ।

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  4. जी.....हरिदेव जी कितनी ही बातें मन को द्रवित कर जाती हैं......

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