अंत भला तो सब भला
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जिसने कभी नहीं की
उसकी परवाह ,
सिर्फ समझा जिसे
सेविका और उठाता रहा
उसके प्रेम से परोसे
भोजन का आनंद
खुद को लापरवाह रखा
उसके दुःख ,तकलीफ से ,
उसके अरमानो से,
उसकी पसंद, नापसंद से
आज वही कर रहा है
इंतजार, उसी सेविका के
अस्पताल से लौट आने का
खूब पछता रहा है ,
रो रहा है वह
अंदर ही अंदर
बस वो तीन दिन काफी थे ,
उसे यह मान लेने को
कि वह स्त्री जिसे वह मात्र
सेविका समझता रहा
कितनी कीमती है ।
कितना ऊपर है
उस स्त्री का अस्तित्व
उसकी सोच की परिधि से ,
जिसे इन चालीस सालों से वह
सेता आया है ,अपने दिमाग में !!
तो क्या इसे हम कह सकते हैं
कि
अंत भला तो सब भला !!!
सीमा श्रीवास्तव
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जिसने कभी नहीं की
उसकी परवाह ,
सिर्फ समझा जिसे
सेविका और उठाता रहा
उसके प्रेम से परोसे
भोजन का आनंद
खुद को लापरवाह रखा
उसके दुःख ,तकलीफ से ,
उसके अरमानो से,
उसकी पसंद, नापसंद से
आज वही कर रहा है
इंतजार, उसी सेविका के
अस्पताल से लौट आने का
खूब पछता रहा है ,
रो रहा है वह
अंदर ही अंदर
बस वो तीन दिन काफी थे ,
उसे यह मान लेने को
कि वह स्त्री जिसे वह मात्र
सेविका समझता रहा
कितनी कीमती है ।
कितना ऊपर है
उस स्त्री का अस्तित्व
उसकी सोच की परिधि से ,
जिसे इन चालीस सालों से वह
सेता आया है ,अपने दिमाग में !!
तो क्या इसे हम कह सकते हैं
कि
अंत भला तो सब भला !!!
सीमा श्रीवास्तव
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