Friday, November 28, 2014

आजादी

  ये कैसी  आजादी 
)))))))))(((((((((((((

नारी,तुम.....

हो चुकी हो विभाजित 

अलग अलग वर्गों में | 

कही दंभ ,कही जोश ,

कही करुणा ,कही रोष  

पुरानी परिभाषाएँ बदलती ,

नई परिभाषाएँ गढती ,

निकल आई हो बहुत आगे  
  

 दिख जाती हो 

 कभी किसी चौराहे पर 

सिगरेट के कश लगाती 


कभी आधे अधूरे कपड़ों में 

नृत्य करती और  मुस्कुराती । । 


पर ये कैसी आजादी ?

ये कैसी परिभाषा ?

कि, अपनी गरिमा को 

आजादी के इस झंडे से 

मत करो चोटिल । 

निकलो घर से पर 

अपनी पहचान लेकर,

अपने नए रूप से 

मत करो शर्मशार 

नारी जाति को ,

मत करो शर्मशार 

नारी जाति को !!


-  सीमा श्रीवास्तव 




2 comments:

  1. आजादी अभी भी कभी कभी बहुत दूर लगती है .
    सटीक चिंतन ..

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