Sunday, November 9, 2014

दीदी

       बहनो का सुख 
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कल मैंने एक स्वप्न देखा
मै फिर से हो गयी हूं छोटी
ढेर सारी दीदियों से घिरी इतरा रही हूं

एक ने गोद में मुझे लिटाया है,

दूसरी सहला रही हैं मेरे केश,
तीसरी दी कहानियॉ सुना रही हैं
मीठी मीठी,
तभी अम्मा ने कस के डांटा मुझे,
कहा....
" उठाती रहो मजे दीदियों के
आलसी हो जाओगी"
तब बडी दी ने बीच में ही
बदल डाली बात
कहा....."रहने दो ना छोटी को छोटी"
कहानी आगे बढती रही स्वप्न में ही...
मैने पढने के लिये जाना चाहा बाहर
पिताजी ने साफ इंकार कर दिया
पर मंझली दी ने कैसे भी समझा बूझा लिया
मै बांधने लगी बैग...,दीदियो को
रोकर गले लगाया...
तभी मेरे बेटे ने मुझे नींद से जगाया
ओह! कितना प्यारा था वह स्वप्न
काश ! यह सच हो जाता !!

सच  यही तो होता है बहनो का सुख
नहीं देखा जाता उनसे छोटे का दु:ख
मिलता है सच मे ,जिन्हे बहनों का प्यार
दिल होता है मजबूत और
हिम्मत बढती है यार ...!!
सीमा श्रीवास्तव

1 comment:

  1. सीमा जी आपने ठिक ही लिखा हैँ बहनो का स्नेह नसिब वालो मिलता हैँ।
    अतिसुन्दर लेखन
    आभार
    मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।

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