Wednesday, November 19, 2014

जीवन का आधार

    जीवन का आधार
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं


नारी तुम नायाब कृति हो ,

जीवन का आधार तुम्ही हो 

फिर भी कितने संकट तुम पर

संशय में हर पल जीती हो ।

जहाँ रचियता भी हारा है 

वहाँ हुई है तेरी जीत ,

प्राण जहाँ निष्प्राण हुआ है 

वहाँ है बोई तुमने प्रीत !!


 रचती हो  तुम्हीं सृष्टि को ,

तुम्ही भूत ......भविष्य तुम्ही हो !

बेटी ,बहन ,माँ ,भार्या 

इन रूपोँ मेँ तुम्ही सजी हो !

 करें पुरुष  तुम्हारी रक्षा...

मेरी  है बस यही गुहार

वरना  धरती पर कौन करेगा

मानव कडियों को तैयार....??

-सीमा श्रीवास्तव



10 comments:

  1. गुहार करते करते तो ये दशा तक पहुंची स्त्री
    बस अब
    दुसरे पर निर्भर ना हो अपनी खुशियों के लिए

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank u didi..mai hamesha aapki baato par amal karti hu...:)

      Delete
  2. अच्छी रचना । गुहार के साथ हुंकार की ज़रूरत ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी..उमा जी...बिल्कुल सही कहा आपने....

      Delete
  3. Replies
    1. धन्यवाद...सुधीर..जी...

      Delete
    2. तुम्हारे में लगन है ,तुम्हारी रचनात्मकता को शुभकामनाये

      Delete
    3. Rashmi didi...bahut bahut..dhanywaad...:)

      Delete