जीवन का आधार
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
नारी तुम नायाब कृति हो ,
जीवन का आधार तुम्ही हो
फिर भी कितने संकट तुम पर
संशय में हर पल जीती हो ।
जहाँ रचियता भी हारा है
वहाँ हुई है तेरी जीत ,
प्राण जहाँ निष्प्राण हुआ है
वहाँ है बोई तुमने प्रीत !!
रचती हो तुम्हीं सृष्टि को ,
तुम्ही भूत ......भविष्य तुम्ही हो !
बेटी ,बहन ,माँ ,भार्या
इन रूपोँ मेँ तुम्ही सजी हो !
करें पुरुष तुम्हारी रक्षा...
मेरी है बस यही गुहार
वरना धरती पर कौन करेगा
मानव कडियों को तैयार....??
-सीमा श्रीवास्तव
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नारी तुम नायाब कृति हो ,
जीवन का आधार तुम्ही हो
फिर भी कितने संकट तुम पर
संशय में हर पल जीती हो ।
जहाँ रचियता भी हारा है
वहाँ हुई है तेरी जीत ,
प्राण जहाँ निष्प्राण हुआ है
वहाँ है बोई तुमने प्रीत !!
रचती हो तुम्हीं सृष्टि को ,
तुम्ही भूत ......भविष्य तुम्ही हो !
बेटी ,बहन ,माँ ,भार्या
इन रूपोँ मेँ तुम्ही सजी हो !
करें पुरुष तुम्हारी रक्षा...
मेरी है बस यही गुहार
वरना धरती पर कौन करेगा
मानव कडियों को तैयार....??
-सीमा श्रीवास्तव
गुहार करते करते तो ये दशा तक पहुंची स्त्री
ReplyDeleteबस अब
दुसरे पर निर्भर ना हो अपनी खुशियों के लिए
Thank u didi..mai hamesha aapki baato par amal karti hu...:)
Deleteअच्छी रचना । गुहार के साथ हुंकार की ज़रूरत ।
ReplyDeleteजी..उमा जी...बिल्कुल सही कहा आपने....
Deletevery nice
ReplyDeleteधन्यवाद...सुधीर..जी...
Deleteतुम्हारे में लगन है ,तुम्हारी रचनात्मकता को शुभकामनाये
DeleteRashmi didi...bahut bahut..dhanywaad...:)
Deleteसही बात .... सुंदर रचना
ReplyDeleteThank u..Monica..jee...
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