कवि सम्मलेन
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काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,
रोज कविताओं में एक ललक होती ।
इतराती ,गुनगुनाती ,मचलती ,बल खाती
यूँ ही नहीं उदास ये बैठी रहती !!
हर शाम छिटकते कई रंग एक साथ ,
कुछ लोग हँसते और बोलते एक साथ ,
एक सोच ,एक समझ ,एक महक होती
हर रोज कविताओं में एक ललक होती ।
चाय के प्यालो में एक सा स्वाद होता
पीने वालों की पसंद ना अलग अलग होती
काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,
रोज कविताओं में एक ललक होती ॥
सीमा श्रीवास्तव
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काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,
रोज कविताओं में एक ललक होती ।
इतराती ,गुनगुनाती ,मचलती ,बल खाती
यूँ ही नहीं उदास ये बैठी रहती !!
हर शाम छिटकते कई रंग एक साथ ,
कुछ लोग हँसते और बोलते एक साथ ,
एक सोच ,एक समझ ,एक महक होती
हर रोज कविताओं में एक ललक होती ।
चाय के प्यालो में एक सा स्वाद होता
पीने वालों की पसंद ना अलग अलग होती
काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,
रोज कविताओं में एक ललक होती ॥
सीमा श्रीवास्तव
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