Saturday, November 22, 2014

कवि सम्मेलन

      कवि सम्मलेन 
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काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,

रोज कविताओं में एक ललक होती । 

इतराती ,गुनगुनाती ,मचलती ,बल खाती 

यूँ  ही नहीं उदास  ये बैठी रहती !!

हर शाम छिटकते कई रंग एक साथ ,

कुछ लोग हँसते और बोलते एक साथ ,

एक सोच ,एक समझ ,एक महक होती 

हर रोज कविताओं  में एक ललक होती । 

चाय के प्यालो में एक सा स्वाद होता 

पीने वालों की पसंद ना अलग अलग होती 

काश हर शाम होता कवि सम्मलेन ,

रोज कविताओं में एक ललक होती ॥ 

सीमा श्रीवास्तव 

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