जब भी कोई सुन्दर फूल
मुरझा के झड़ जाता है
मन रो पड़ता है ।
जब भी ढह जाती है
बच्चे की रेत की मीनार
मन रो पड़ता है ।
जब कोई तितली, पर
फड़फड़ाने से हो जाती है लाचार
मन रो पड़ता है ।
जब भी दो दोस्तो के बीच
पड़ जाती है दरार
मन रो पड़ता है ।
हाँ कभी कभी ये मन
हो जाता है अति संवेदनशील
कि आँसू जब रूकने से
कर देते हैं इंकार
मन रो पड़ता है ।
- सीमा श्रीवास्तव
अतिसुन्दर
ReplyDeleteमन कोमल होता है आसानी से पिगल जाता हैँ।स्वागत हैँ पधारै
Thanks a lot....
Deleteमन को कठोर करो
ReplyDeleteतब दर्द और बढ जायेगा दीदी
ReplyDeleteघटना १९७८ की है । करीब अस्सी वर्षीय बुज़ुर्ग को रोज़ी कमाते हुए देखा था । वह तौलिए बेच रहा था । बुज़ुर्ग ने अपने पुराने ग्राहक का कहा~आप दो तौलिए ख़रीद लेंगे तो मेरी एक वक्त की रोटी का बन्दोबस्त हो जाएगा । अपने कमरे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद करके फफक-फफक कर रोया । मज़दूर पिता जी का चेहरा ख़याल में आ गया । दो वर्ष बाद बैंक की नौकरी मिल गयी । अब मैं अपने पैरेन्ट्स के लिए रोटी कमा सकता था । माँ-बाबू जी को गुज़रे चौबीस साल हो गए हैं । मेरी संवेदना कितनी ही बार रुलाती है ।
ReplyDeleteजी.....हरिदेव जी कितनी ही बातें मन को द्रवित कर जाती हैं......
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