जंगल लगातार छांटें जा रहे हैं ,
जंगली जानवर भाग रहे हैं इधर उधर..
तरह तरह के मुखौटे और परिधान पहनकर
पर सब में भूख ,प्यास तो वही है जानवरो जैसी ।
मीठे फल नहीं भाते उन्हें ,
सड़ाते हैं वो उसे जमीन के अंदर दबा के
कि असर गहरा हो दिलो दिमाग पर
फिर उसे पीकर वे नोंच डालते हैं
अपने मुखौटे और परिधान ,
दिखाने लगते हैं तरह तरह के करतब
कि कितनी देर वो छुपा सकते हैं
अपनी असलियत को ,
आखिर दम तो किसी का भी घुटता है
परदों के पीछे ,मुखौटे के अंदर
छोड़ो रहने दो इन्हें जानवरो जैसा
कि
जंगल के निवासी को कहाँ भाते हैं बागीचे!!
- सीमा श्रीवास्तव
जंगली जानवर भाग रहे हैं इधर उधर..
तरह तरह के मुखौटे और परिधान पहनकर
पर सब में भूख ,प्यास तो वही है जानवरो जैसी ।
मीठे फल नहीं भाते उन्हें ,
सड़ाते हैं वो उसे जमीन के अंदर दबा के
कि असर गहरा हो दिलो दिमाग पर
फिर उसे पीकर वे नोंच डालते हैं
अपने मुखौटे और परिधान ,
दिखाने लगते हैं तरह तरह के करतब
कि कितनी देर वो छुपा सकते हैं
अपनी असलियत को ,
आखिर दम तो किसी का भी घुटता है
परदों के पीछे ,मुखौटे के अंदर
छोड़ो रहने दो इन्हें जानवरो जैसा
कि
जंगल के निवासी को कहाँ भाते हैं बागीचे!!
- सीमा श्रीवास्तव
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