Sunday, December 14, 2014

भजन




प्रभू   के काते धागे हैं हम(आत्मा)

सोचो क्या बनना है..?

किस रंग में रंगना है तुमको

किस तन में बसना  है..


प्रभू के काते धागे हैं हम 

सोचो क्या बनना है..?


समझ नहीं पाओगे गर तो

उलझ उलझ रह जाओगे

फँस  के जीवन के जंगल में

उलझन  ही तुम  पाओगे 


बाती सा तुम समझो खुद को 

प्रभू नेह में जाओ डूब 

जलो साँझ के दीए भांति 

हो जाए आलोकित सब 


हो जाए आलोकित सब !!


- सीमा श्रीवास्तव 









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