Friday, December 26, 2014

हकीकत

मैं चाहती थी लिखना ,

रेत पर तुम्हारे और मेरे नाम के 

पहले अक्षर। …… 

तुमने कहा सब हसेंगे हम पर ,

मैंने चाहा लहरो के साथ 

कुछ देर खेलना ,

तुम हाथ खींच बहुत 

दूर ले गए ,

कहा लहरों का कोई 

भरोसा नहीं । 

 मुझे पता है कि तुम्हें

कितनी फिक्र है मेरी

सच ,तुम हकीकत से जुडे होते हो

इस हद तक  कि मैं चाह के  भी 

 रोमानी हो नहीं पाती....

सीमा श्रीवास्तव...



2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना। बधाई।

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  2. धन्यवाद शांतिदीप जी...

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