Friday, October 10, 2014

उम्मीद

                                जुगाड़ 
                           _________                                    

कुछ उम्मीदो को

सिरहाने रख के सोती हूं मैं,

तभी तो जागती भी हूँ 

एक  नयी हिम्मत के साथ।

कुछ चाहतों का रोज 

दामन पकडती हूँ  मैं,

ताकि जिंदा  रहने की

चाह बनी रहे....

कुछ हौसलो को रोज

सहलाती हूं मैं,

तभी तो हौसले भी

देते रहते है  साथ....

सीमा श्रीवास्तव 

4 comments:

  1. भाव-प्रवण रचना। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  2. आपने बहुत खुब लिख हैँ।
    जब उम्मिद होगी तभी हौसले बुलंद होगे ।
    सुन्दर और सरस
    आज मैँ भी अपने मन की आवाज शब्दो मेँ बाँधने का प्रयास किया प्लिज यहाँ आकर अपनी राय देकर मेरा होसला बढाये
    आपका ब्लॉग यहाँ http://safaraapka.blogspot.in/सफर आपका पर देखे

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  3. खुबसूरत रचना !


    मेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित  हैं :)

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  4. सीमा जी बहुत सुंदर रचना आपकी इस रचना प्रतिउत्तर मै अपनी इस रचना के साथ दे रहा हूँ
    http://pratibimbprakash.blogspot.com/2014/01/The-life-of-man-is-smiling-flowers-blossom.html

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