Wednesday, October 15, 2014

कविताएँ


 कभी सोच कर

 लिखी जाती हैं कविताएँ ,

 कभी यूँ ही चले आते हैं 

 कुछ भाव ,उछलते ,कूदते 

कि अगर उन्हें कागज़ पर 
 ना सहेजो तो 

 भाग भी जाते हैं। 

कभी तन्हाईयो के बीच 

पीछे से आकर आँखे बंद 

कर जाते हैं कुछ भाव और 

दूर हो जाती है तन्हाई  ।      

कभी बैचैनी में 

छटपटाते कुछ शब्द 

चाहते हैं सुकून  और 

लेट जाते हैं 

कागज़ के पन्नो पे आकर । 

बस ऐसे ही चलते-फिरते ,

दौड़ते- भागते 

जन्म लेती रहती हैं कविताऍ  । 


- सीमा श्रीवास्तव 

1 comment:

  1. सीमा जी आपने बहुत सही लिखा हैँ । कि कभी बैचैनी में
    छटपटाते कुछ शब्द
    चाहते हैं सकून और
    लेट जाते हैं
    कागज़ के पन्नो पे आकर ।
    बहुत सुन्दर
    धनतेरस की शुभकामनाऐ स्वागत पधारिये

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