Wednesday, October 8, 2014

यादें



छुट्टियों में जब 

घर जाती हूँ ,

माँ  के घर से

 लेकर आती हूँ

सौगाते और छोड़  

आती हूँ यादे ,किस्से ,

जिन्हे वो डायरी के

 पन्नो की तरह

 उलटती, पलटती 

रहती हैं ,

सोते, जागते ,उठते ,बैठते ||

सीमा श्रीवास्तव 




2 comments:

  1. माँ को समर्पित भावुक और मन को छूती कविता --- वाकई सच है माँ को सब कुछ सुनाकर मन हल्का हो जाता है -----
    सुंदर कविता
    सादर --

    आग्रह है ---- मेरे ब्लॉग में भी शामिल हों
    शरद का चाँद -------
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  2. धन्यवाद ज्योति जी.....।

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