दिन भर में कितनी ही दफे
देखती हूँ घडी ,
समय की रफ़्तार से
मिलाना चाहती हूँ कदम।
अचानक घडी की तीनों सुइयों में
मुझे दिखती है अपनी झलक।
मै भी तो सेकंड ,मिनट
घंटे की सूई सी
कभी चलती हूँ ,
कभी दौड़ती हूँ
पर रुकती कहॉ हूँ
चलती रहती हूँ अनवरत।
जागते समय शरीर ,
सोते समय दिमाग
चलता ही रहता है।
तभी तो सपनो के रास्ते
घूम आती हूँ कहॉ ,कहॉ से !!
- सीमा श्रीवास्तव
मै भी तो सेकंड ,मिनट
ReplyDeleteघंटे की सूई सी
कभी चलती हूँ ,
कभी दौड़ती हूँ
पर रुकती कहॉ हूँ
चलती रहती हूँ अनवरत।
जागते समय शरीर ,
सोते समय दिमाग
चलता ही रहता है।
तभी तो सपनो के रास्ते
घूम आती हूँ कहॉ ,कहॉ से !!
बढ़िया अभिव्यक्ति
Dhanywaad Yogi ji
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