Saturday, March 28, 2015

प्रवाह

चरैवेति - चरैवेति
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प्रवाह  जरुरी है ,

कही भी ,कभी भी ,

किसी भी रूप में। 

की थम जाना
 सड जाने सम है। 

अभिव्यक्त करो 

अंतर्मन को ,

जी लो हर पल को। 

ज्यादा उलझो नहीं ,

खीचते रहो मन के धागे। 

 जैसे हो ,जो हो ,
तुम उसकी रचना हो। 

तो रचयिता के गुण को अपनाओ। 
रचते रहो ,रचते रहो। 
  
सृजन करते रहो, 
सृजन करते रहो !!

- सीमा श्रीवास्तव 


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