Wednesday, March 4, 2015

आह


मेरा दुःख था 
किश्तों में ,

उसकी पीड़ा थी 

एक आह !

मेरा दुःख था 
  छोटे ,छोटे पत्थरो सा !

उसका दुःख था 
 एक विशाल पर्वत,

बहुत पछताई मैं 
उससे यह पूछ के 
कि तुम क्यों  मुस्कुरा रही  हो इतना ?

और उसने भी  सारे राज खोल दिए 

पर क्या मैं सहज हो पाई अब तक !

उधर वो भी  होगी बैचैन  !
 हॉ ,बरसों से दबे गम को  न ही 
उघेड़े तो अच्छा हो  !!

- सीमा 


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