मेरा दुःख था
किश्तों में ,
उसकी पीड़ा थी
एक आह !
मेरा दुःख था
छोटे ,छोटे पत्थरो सा !
उसका दुःख था
एक विशाल पर्वत,
बहुत पछताई मैं
उससे यह पूछ के
कि तुम क्यों मुस्कुरा रही हो इतना ?
और उसने भी सारे राज खोल दिए
पर क्या मैं सहज हो पाई अब तक !
उधर वो भी होगी बैचैन !
हॉ ,बरसों से दबे गम को न ही
उघेड़े तो अच्छा हो !!
- सीमा
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