घरनी (बिनं घरनी घर भूत का डेरा )
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घर की खुशबू है घरनी ,
दीवारो की रंगत है घरनी ।
चारों कोने में चहलकदमी कर के
छोड़ती है अपनी पहचान घरनी ।
सूरज की किरणों का पहन कर जामा
चल पड़ती है सफर पर अपने ,
चाँद के रंगत को बटोरकर
थक हार सो जाती घरनी ।
सुबह की साज -सज्जा से ,
साँझ के दिए - बाती तक
देह अपना अर्पित कर के
घर को घर बनाती घरनी ।
अपने एड़ियों और टखनों पे
देखो लट्टू सी नाच जाती घरनी ।
- सीमा श्रीवास्तव
घर की खुशबू है घरनी ,
दीवारो की रंगत है घरनी ।
चारों कोने में चहलकदमी कर के
छोड़ती है अपनी पहचान घरनी ।
सूरज की किरणों का पहन कर जामा
चल पड़ती है सफर पर अपने ,
चाँद के रंगत को बटोरकर
थक हार सो जाती घरनी ।
सुबह की साज -सज्जा से ,
साँझ के दिए - बाती तक
देह अपना अर्पित कर के
घर को घर बनाती घरनी ।
अपने एड़ियों और टखनों पे
देखो लट्टू सी नाच जाती घरनी ।
- सीमा श्रीवास्तव
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