Friday, August 8, 2014

पाबंदी

पाबंदियों के

 जूतियों  में सिले
पाँव जाने

 कब इतने बड़े

  हो गए कि

जूतियाँ तो

 फट गई

पर फीते अब भी

 है बंधे हुए

सीमा श्रीवास्तव




10 comments:

  1. बेटियाँ संस्कार में कैद

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  2. कृपया निम्नानुसार कमेंट बॉक्स मे से वर्ड वैरिफिकेशन को हटा लें।

    इससे आपके पाठकों को कमेन्ट देते समय असुविधा नहीं होगी।

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  3. बिलकुल और परम्पराएं इसी फट चुके जूते की तरह हैं !
    जिनका मूल उद्देश्य इंसान और सभ्यता की रक्षा होना था पर वो अब पाँव को बाँधने और वजन देने का काम कर रहे हैं !
    बहुत सही

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    1. Thank u...Anuj .for your valuable comments..:)

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  4. वक़्त के साथ मुताबिक़ बदलाव भी होना चाहिए , रुका हुआ पानी सड़ ही जाता है ,
    पुरानी परम्पराएं , बचपन के कितने ही फितूर और जाने क्या क्या मन के तंतुओं में गांठे बने रहते हैं !

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  5. Sachmuch...aapne bilkul sahi kaha .....Anuj..
    aur bahut had tak badlaav aaya bhi hai..par kahi kahi jame huye pani ki tarah kuch abhi bhi badboo de rahe hai,..sad rahe hai...Waha safai ki jaroorat hai..:)

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  6. बेहद गहन भाव .... लिये सशक्‍त प्रस्‍तुति

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