पतंग को ढ़ील
दो तो वो
इधर ,उधर
भागती है ,
आजाद समझ
बैठती है
खुद को !
पर अचानक
एक झटका
लगता है !
उसे याद आ
जाता है कि
वो एक डोर से
बँधी है !
बहुत बार
हम भी
पतंग की
तरह उड़ने लगते हैं
पर
हमारी डोर
हमें कस के
हमारी डोर
हमें कस के
पकड़ रहती है।
- सीमा
- सीमा
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