कितने मौसमों का
असर लिए मैं
चल रही हूँ|
असर लिए मैं
चल रही हूँ|
लम्हों की
बेवफाइयाँ
सह रही हूँ ।
क्यों हर चेहरा
है नकाब के अंदर
हर रास्ते उससे
मैं उलझ रही हूँ ।
बहुत जी लिया
दफन कर के
आरज़ू .
दफन कर के
आरज़ू .
अब आरजुओं
की खातिर मैं
जी रही हूँ|
- सीमा
सुंदर चिंतन एवं भाव-अभिव्यक्ति।
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