सपने भी
अजीब होते हैं,
पास सोए बच्चे को
गुम कर देते हैं
और हम उन्हें ढूंढते -ढूंढते
बेचैन होते रहते हैं।
ये सपने बड़ी आसानी से
मुझे फिर से छोटा बना देते हैं
कल रात मैं फिर से अपने
गुड़ियों के कपड़े सिल रही थी
और खिलौनों वाली कपों में
ढ़ाल रही थी चाय।
कभी -कभी सपनों के शहर में
अचानक उग आते हैं
ढ़ेर सारे रिश्ते -नाते,
ढ़ेर सारे भाई,ढ़ेर सारी बहनें
उस वक्त नींद में ही मैं जी लेती हूँ
अपनी मनचाही जिंदगी
~ सीमा
No comments:
Post a Comment