वो लिख रहे हैं
अपने -अपने एहसास
मैं पढ़ रही हूँ दोनों को
एक साथ!
मैं एक साथ
प्रेम और दर्द
दोनों को जी रही हूँ!
मैं जी रही हूँ
मजबूरी,
मैं जी रही हूँ उदासी,
मैं जी रही हूँ
तड़प और बेचैनी !
मैं चाह कर भी
प्रेम की थाली से
नहीं छाँट पा रही
कंकड़,पत्थर
कि प्रेम के राहों
में हरदम बिछते
रहे हैं रोड़े!
प्रेम आबाद कम
घायल होता रहा है ज्यादा!!
(इन दिनों लिखने से ज्यादा इन्हें पढ़ने की ख्वाहिश है ......प्रेम में लिखे गए हर शब्द बड़े कीमती होते हैं!!)
~ सीमा
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