जलता हुआ दीया
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कितनी बार अपनी लौ को
तेज हवाओं से बचाने के लिए
अपने हाथों से ओट लेती हूँ
मन की बाती को नेह में
भिगोकर रखती हूँ,
हर पल हौले -हौले
मुस्काती हूँ ताकि
रौशन होता रहे
मेरे उम्मीदों का घर।
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कितनी बार अपनी लौ को
तेज हवाओं से बचाने के लिए
अपने हाथों से ओट लेती हूँ
मन की बाती को नेह में
भिगोकर रखती हूँ,
हर पल हौले -हौले
मुस्काती हूँ ताकि
रौशन होता रहे
मेरे उम्मीदों का घर।
हूँ तो मैं एक छोटे से दीए जैसी
पर अपने घर की रोशनी हूँ मैं
खुद को जिन्दा रखती हूँ
ताकि ये घर हरा-भरा रहे!
खुद जलती हूँ
कि कोना,कोना
चमकता रहे!!
~ सीमा
पर अपने घर की रोशनी हूँ मैं
खुद को जिन्दा रखती हूँ
ताकि ये घर हरा-भरा रहे!
खुद जलती हूँ
कि कोना,कोना
चमकता रहे!!
~ सीमा
Waah kya baat hai. Ati Sundar!
ReplyDeleteDr. Ashok Madhup
Thank u.
DeleteSharing your blogger Seema.
ReplyDeletetc.love.
Thanks.
DeleteSharing your blogger Seema.
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