खोज रही थी
आधी रात को
खिड़की से झाँक के , कोई भूत !!
कि कहीं कोई एक हमदर्द भूत ही मिल जाता ,
इंसान तो हमदर्द हो पाता नहीं ,
खुदा भी कहीं नजर आता नहीं
सुनती हूँ वो (भूत ) कभी कभी, कहीं
दिख जाते हैं.......
शायद वो ही कुछ
इंसानियत कर जाएं !!
इंसानों के इस सम्वेदनहीन शहर में
कहीं कोई भूत ही मददगार मिल जाए!!
सीमा श्रीवास्तव
(यह एक व्यग्य है,...उन इंसानों पर...जो भूतों से तो डरते हैं.पर कुकर्म करने से नहीं डरते......)
No comments:
Post a Comment