Saturday, January 16, 2016

सतरंगी सपने

सतरंगी सपने 
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उसने सतरंगी सपनों की चादर
फैला दी थी उसकी छत पर !
एक दिन जोरों की बारिश हुई!
 रंग एक दूसरे में समा गए!
चादर चितकबरी हो गई !
 रंग टपक - टपक कर
आँगन में बिखर गए!
रंग एक दूसरे से
घुल - मिल गए थे!
यही रंग तो  सच्चे थे !
सपनों के सतरंगी रंग तो
बिल्कुल कच्चे थे!
- सीमा

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