वो छोड़ आई थी
उस शहर को
उसकी यादों को भी
दफ़न कर आई थी !
वो भर लेना
चाहती थी
अपने दामन को
नए खुशबुओं से ,
मिटाने चली थी
हर याद को
लेकिन कुछ सूखे पत्ते
उस पेड़ से उतरकर
बड़ी ख़ामोशी से
उसके साथ
चले आए थे
जहां वह यादो की
गट्ठर बाँध आई थी !
साथ ही चली आई थी
वो सोंधी ,सोंधी मिट्टी
जिसमे वो दबा आई थी
प्रेम की हर निशानी को !!
हाँ ,प्रेम अब भी
मौजूद है उसके
आसपास !!
- सीमा
Seema ji bahut gahrai hai is shabdo me.
ReplyDeleteItni badi feeling bade hi somy shabdo me bayan kar di aapne
Dhanywaad.
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