Monday, September 28, 2015

प्रेम


वो छोड़ आई थी 
उस  शहर को 
उसकी यादों को भी 
दफ़न कर आई थी !

 वो भर लेना 
चाहती थी 
अपने दामन को 
नए खुशबुओं से ,

मिटाने चली थी 
हर याद को 

लेकिन कुछ सूखे पत्ते 
उस पेड़ से उतरकर 
बड़ी ख़ामोशी से 
उसके साथ 
चले आए थे 
जहां वह  यादो की 
 गट्ठर बाँध आई थी !

साथ ही चली आई थी 
वो सोंधी ,सोंधी मिट्टी 
जिसमे वो दबा आई थी 
प्रेम की हर निशानी को !!

हाँ ,प्रेम अब भी 
मौजूद है उसके 
आसपास !!

- सीमा 



2 comments:

  1. Seema ji bahut gahrai hai is shabdo me.

    Itni badi feeling bade hi somy shabdo me bayan kar di aapne

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