वो छोड़ आई थी उस शहर को उसकी यादों को भी दफ़न कर आई थी ! वो भर लेना चाहती थी अपने दामन को नए खुशबुओं से , मिटाने चली थी हर याद को लेकिन कुछ सूखे पत्ते उस पेड़ से उतरकर बड़ी ख़ामोशी से उसके साथ चले आए थे जहां वह यादो की गट्ठर बाँध आई थी ! साथ ही चली आई थी वो सोंधी ,सोंधी मिट्टी जिसमे वो दबा आई थी प्रेम की हर निशानी को !! हाँ ,प्रेम अब भी मौजूद है उसके आसपास !! - सीमा